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धार्मिक एवं सत चरित्र गठन के लिए सेवारत रहे गुरु नानक देव जी

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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गुरु नानक देव जी जयंती विशेष……….
वाहे गुरु नानक देव जी की जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पण,
वाहे गुरु,वाहे गुरु,वाहे गुरुl सत श्री अकाल जी।
साम्प्रदायिकता से मुक्त तथा जातिगत सामाजिक कुरीतियों के नागपाश से मुक्त समाज व्यवस्था के संस्थापन से ही संसार तथा विश्व में स्थायी शान्ति संस्थापन संभव है,यह अनुभव आज से करीबन ५५० वर्ष पहले रायभोई की तलवंडी(वर्तमान ननकाना साहिब,पंजाब,पाकिस्तान)में कार्तिक पूर्णिमा के दिन आविर्भूत हुए महान दार्शनिक,समाज सुधारक,देशभक्त,कवि,विश्व बन्धु योगी गुरु नानक देव जी का है। जिनकी चाहत एक उन्नत तथा स्वतंत्र एवं विकासशील राष्ट्र व्यवस्था की रही। गुरु नानक देव जी विश्वास रखते थे धार्मिक उदारता पर। मूर्ति पूजन को उन्होंने निरर्थक माना,उनके अनुसार-ईश्वर दर्शन केवल आन्तरिक साधना से ही संभव है। निराकार परम ब्रह्म ही सत्य है।
चरित्र,सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन का धार्मिक एवं सत चरित्र गठन करने के लिए गुरु नानक देव जी ने १६वीं शताब्दी में उत्तर भारत में हिंदू एवं मुस्लिम धर्म को संयुक्त करते हुए सिख धर्म की प्रतिष्ठा की। एक संगठित,अनुशासित,अनुपम मानवता आधारित धर्मीय संस्था,जिस धर्म का मूल उद्देश्य यह है कि जाति व धर्म के भेदभाव से मुक्त समाज व्यवस्था तथा मानव सेवा हेतु संगठित महामिलन व्यवस्था की जाए। संगठन में चारित्रिक नीति ऐसी हो,जैसे-अनुचित उपार्जन वर्जित हो,उपार्जित किए धन से कुछ हिस्सा लंगर चखने के लिए दान करना है। बीमार,असहाय व दरिद्रों के लिए सेवा व दान करना इत्यादि महती उद्देश्यों को लेकर सिख धर्म का प्रवर्तन हुआ है।
गुरु नानक देव जी बाल्यकाल से ही चमत्कारिक ज्ञान के अधिकारी रहे,जिसमें बच्चापन कम रहा। बालक नानक जी सदा संसार में उदासीन रहते हुए भगवत चिन्तन में ही मगन रहते थे। पढ़ने-लिखने के लिए शाला में दाखिल तो हुए,लेकिन हमेशा मगन रहते थे ईश्वर चिन्तन मेंl एक अति आश्चर्य बालक! एक ७-८ साल के बालक का भगवत प्राप्ति के विषय पर किए गए प्रश्न के आगे शाला के शिक्षकों ने भी हार मान ली थी। पढ़ाई छोड़ कर भगवत चिन्तन व सत्संग में डूब जाना एवं और भी अनेक दिव्य अलौकिक क्रिया व घटनाएं हैं,जिससे जनमानस में बालक एक दिव्य शक्तिधर है,ऐसा ही प्रतीत होने लगा।
ईश्वर एक है,ईश्वर निराकार है,गुरु ही परमेश्वर है। केवल शुद्ध चित्त से,चिन्तन-मनन-कीर्तन से ही अन्तरात्मा की दिव्य दृष्टि से साक्षात ईश्वर का दर्शन संभव है। मानव सेवा,दीन दुखियों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है,देश की रक्षा करना कर्तव्य है और वीर होना आवश्यक है,ऐसी ही उन्नत चिन्तन भावधारा को लेकर सिख धर्म का प्रवर्तन हुआ है।
वाहे गुरु नानक देव जी का वाणियों का लिपिबद्ध ग्रन्थ ही ग्रन्थसाहिब है। इसलिये,सिख धर्म की प्रथा या नियमानुसार (या रीत) निराकार परम ब्रह्म के स्वरुप गुरुवाणी या गुरुग्रन्थ साहिब की ही पूजा-अर्चना करना प्रचलित है। दया,दान,ध्यान,कीर्तन,सेवा,सतचरित्र गठन करना,वीर की तरह देश की रक्षा करना,समाज में बिना किसी भेदभाव से भातृ भाव से रहकर आत्मिक,चारित्रिक एवं सामाजिक उन्नयन करना है। ऐसे महान धर्मप्रवर्तक गुरु नानक देव जी के श्री चरण में भक्तिपूर्ण प्रणाम।
सत श्री अकाल जी।
वाहे गुरु, वाहे गुरु, वाहे गुरु॥

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

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