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नए भारत में ‘महावीर’ बनना ही सार्थकता

ललित गर्ग

दिल्ली
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भगवान महावीर के २५५०वें ‘मोक्ष कल्याणक दिवस’ को मनाने की सार्थक पहल करके एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है। कल्याणक महोत्सव का महत्व सिर्फ जैनियों के लिए ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज के लिए है। महावीर की शिक्षाओं की उपादेयता सार्वकालिक, सार्वभौमिक एवं सार्वदेशिक है, दुनिया के तमाम लोगों ने इनके जीवन एवं विचारों से प्रेरणा ली है। सत्य, अहिंसा, अनेकांत, अपरिग्रह ऐसे सिद्धान्त हैं, जो हमेशा स्वीकार्य रहेंगे और विश्व- मानवता को प्रेरणा देते रहेंगे। महावीर का संपूर्ण जीवन मानवता के अभ्युदय की जीवंत प्रेरणा है। लाखों-लाखों लोगों को उन्होंने अपने आलोक से आलोकित किया है। इसलिए नए भारत में महावीर बनना जीवन की सार्थकता का प्रतीक है।
भगवान महावीर की शिक्षाओं का हमारे जीवन और विशेषकर व्यावहारिक जीवन में किस प्रकार समावेश हो और कैसे हम अपने जीवन को उनकी शिक्षाओं के अनुरूप ढाल सकें, यह अधिक आवश्यक है, लेकिन इस विषय पर प्रायः सन्नाटा देखने को मिलता है। विशेषतः जैन समाज के लोग एवं अनुयायी ही महावीर को भूलते जा रहे हैं, उनकी शिक्षाओं को ताक पर रख रहे हैं। दुःख तो इस बात का है कि, जैन समाज के सर्वे-सर्वा लोग ही सबसे ज्यादा महावीर को अप्रासंगिक बना रहे हैं। महावीर ने जिन-जिन बुराइयों पर प्रहार किया, वे उन्हें ही अधिक अपना रहे हैं। उस महान् क्रांतिकारी वीर महापुरुष का मोक्ष कल्याणक महोत्सव आयोजनात्मक ही नहीं, प्रयोजनात्मक नहीं हो, इस दृष्टि से संघ का यह आयोजन संपूर्ण देशवासियों को एक नया संदेश देगा। हम महावीर को केवल पूजते हैं, जीवन में धारण नहीं कर पाते हैं। हम केवल कर्मकाण्ड और पूजा विधि में ही लगे रहते हैं और जो मूलभूत सारगर्भित शिक्षाएं हैं, उन्हें जीवन में नहीं उतार पाते।
समय के आकाश पर आज अनगिनत प्रश्नों का कोलाहल है। महावीर ने जो उपदेश दिया, हम उसे आचरण में क्यों नहीं उतार पाए ? मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था और विश्वास कमजोर क्यों पड़ा ? धर्म की व्याख्या में हमने अपना मत, स्वार्थ, सुविधा, सिद्धान्त क्यों जोड़ दिया ? ये ऐसे प्रश्न हैं, जो हमारे जीवन को जटिल और समस्याग्रस्त बना रहे हैं। मनुष्य जिन समस्याओं और जटिल परिस्थितियों से घिरा हुआ है, उन सबका समाधान महावीर के दर्शन और सिद्धांतों में समाहित है। जरूरी है कि, महावीर ने जो उपदेश दिए, हम उन्हें जीवन और आचरण में उतारें। हर व्यक्ति महावीर बनने की तैयारी करे, तभी समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। महावीर वही व्यक्ति बन सकता है, जो लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित हो एवं जिसमें कष्टों को सहने की क्षमता हो। जिसके मन में संपूर्ण प्राणी मात्र के प्रति सह-अस्तित्व की भावना हो। जो पुरुषार्थ द्वारा न केवल अपना भाग्य बदलना जानता हो, बल्कि संपूर्ण मानवता के उज्ज्वल भविष्य की मनोकामना रखता हो।
महावीर जन्म से महावीर नहीं थे। उन्होंने जीवनभर अनगिनत संघर्षों को झेला, कष्टों को सहा, दु:ख में से सुख खोजा और गहन तप एवं साधना के बल पर सत्य तक पहुंचे, इसलिए वे हमारे लिए आदर्शों की ऊंची मीनार बन गए। उन्होंने यह समझ दी कि, महानता कभी भौतिक पदार्थों, सुख-सुविधाओं, संकीर्ण सोच एवं स्वार्थी मनोवृत्ति से नहीं प्राप्त की जा सकती। उसके लिए सच्चाई को बटोरना होता है, नैतिकता के पथ पर चलना होता है और अहिंसा की जीवन शैली अपनानी होती है।
महावीर का एक महत्वपूर्ण संदेश है ‘क्षमा’। महावीर ने कहा कि, ‘मैं सभी से क्षमा याचना करता हूँ। मुझे सभी क्षमा करें। मेरे लिए सभी प्राणी मित्रवत हैं। मेरा किसी से भी बैर नहीं है।’ यदि महावीर की इस शिक्षा को हम व्यावहारिक जीवन में उतारें, तो फिर क्रोध एवं अहंकार मिश्रित दुर्भावना समाप्त हो जाएगी।
भगवान महावीर चिन्मय दीपक हैं। दीपक अंधकार का हरण करता है, किंतु अज्ञान रूपी अंधकार को हरने के लिए चिन्मय दीपक की उपादेयता निर्विवाद है।
महावीर आदमी को उपदेश-दृष्टि देते हैं कि, धर्म का सही अर्थ समझो। धर्म तुम्हें सुख, शांति, समृद्धि, समाधि, आज, अभी दे या कालक्रम से दे, इसका मूल्य नहीं है। मूल्य है धर्म तुम्हें समता, पवित्रता, नैतिकता व अहिंसा की अनुभूति कराता है। महावीर बनने की कसौटी है-देश और काल से निरपेक्ष तथा जाति और संप्रदाय की कारा से मुक्त चेतना का आविर्भाव। भगवान महावीर एक कालजयी और असांप्रदायिक महापुरुष थे, जिन्होंने अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत को तीव्रता से जीया। वे इस महान त्रिपदी के न केवल प्रयोक्ता और प्रणेता बने, बल्कि पर्याय बन गए। आज के युग की जो भी समस्याएं हैं, चाहे हिंसा एवं युद्ध की समस्या हो, चाहे राजनीतिक अपराधीकरण एवं अनैतिकता की समस्या, चाहे तनाव एवं मानसिक विकृतियां हो, चाहे आर्थिक एवं पर्यावरण की समस्या हो- इन सब समस्याओं का समाधान महावीर के अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत के सिद्धान्तों एवं उपदेशों में निहित है। इसलिए, आज महावीर के पुनर्जन्म की नहीं बल्कि उनके आदर्श जीवन के अवतरण की-पुनर्जन्म की अपेक्षा है। जरूरत है कि, हम बदलें।