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नदी-समंदर लूट रहे हो

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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सारा पानी चूस रहे हो, नदी-समंदर लूट रहे हो,
दानवता की धूम मची है, मानवता को लूट रहे हो।

राजनीति की चौसर पर तुम, दाँव जिन्दगी लगा रहे हो,
न्याय नीति न्यायालय बनकर, धर्म- जाति धन फँसा रहे हो।

दिल्ली को झीलों का संगम, वादा झूला झुला रहे हो,
दिल्ली कालिन्दी जलप्लावन, क्यों शासक बन सता रहे हो।

जहरीले नमकीन समंदर, बन त्रासद जल रुला रहे हो,
मुफ्तखोर पानी बिजली कर, शराबों को क्यों पिला रहे हो।

पानी-पानी दिलवर जानी, गुलशन ग्रोवर बना रहे हो,
हाहाकार वतन जलप्लावन, मीत समन्दर बना रहे हो।

बिन पानी सूखी ज़मीन जड़, जीवन पानी तड़पाते हो,
बस चुनावी चिन्ता नेता, दोषारोपण भड़काते हो।

दानवीय खल सत्ता लोलुप, दुश्चरित्र बन सता रहे हो,
विकट आज आफ़त जनजीवन, जंजीरों में फँसा रहे हो!

करदाता क्षुधार्त तृषाकुल, उपहास तुम उड़ा रहे हो,
कठिन इम्तिहाँ जीवन दुनिया, जनमत- अभिमत लुटा रहे हो।

मानवीय मूल्यों से हटकर, पद सत्ता सुख दिखा रहे हो,
त्याग शील करुणा ममता दिल, दया क्षमा गुण मिटा रहे हो।

किस पर किसका हो यकीन अब, शहरों को तुम डुबो रहे हो,
अन्तर्मन में गाँव विरत मन, ख़ुद वज़ूद निज मिटा रहे हो।

प्राणी जग बनता जनजीवन, जल संचय निज बचा रहे हो,
अन्नपूर्ण पानी बिन धरती, कैसा ढाँढस बँधा रहे हो!

बस चिन्ता सत्ता सुख वैभव, लोकतंत्र को डरा रहे हो,
आरक्षण का लालच देकर, समुदायों को लड़ा रहे हो।

एक संघ भारत अनेकता, समता मौलिक मिटा रहे हो,
शान्ति प्रेम परमार्थ निकेतन, समरसता को सता रहे हो।

जलप्लावन से त्राहिमाम जग, फिर भी पानी रुला रहे हो,
करी दोस्ती मेघ समन्दर, नदियों को तुम भड़काते हो।

रखो लाज तरुवर नद कानन, भौतिक सुख में काट रहे हो,
श्वांस आश बरसात हेतु तरु, उसी प्रकृति द्रुम मिटा रहे हो।

सुधरो रे शैतान नियत जन, कोप प्रकृति तुम धता रहे हो,
पानी है अनमोल धरोहर, बिन पानी जग मिटा रहे हो।

मृगतृष्णा में बने जानवर, राजनीति रस घूँट रहे हो,
सारा पानी चूस रहे हो, नदी समंदर लूट रहे हो॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥