ख़ुशी-ख़ुशी जब गले मिले हम,
तब भी बहते नयन से नीर।
गम में भी तड़पें जो कभी हम,
तब भी बहते नयन से नीर।
ठंडी-ठंडी हवा चले जब,
मन्द-मन्द मुस्काए।
दिल में मचलती हैं उमंगें,
नयन छलक ही जाएँ।
हो मुहब्बत गर हमें उनसे,
तड़पें दिन और रात।
नयन से झरते नीर हमारे,
कैसे करें हम बात।
सीमा से तिरंगे में लिपट कर,
जब माँ का बेटा आया।
घर वाले क्या-बाहर वाले,
नयनों से नीर बहाया।
बरसों से बिछुड़े साथी मिलें,
तब भी नयनों से नीर बहाएं।
दुःख-सुख के जज़्बातों में देखो,
वो कहां-कहां ले जाएँ।
मिल न सकें जो करें प्यार,
वो दिल थामे रह जाते।
किससे कहें वो दिल की बातें,
बस नयन नीर आ जाते।
ग़म व ख़ुशी के मेले में,
बस नयन से नीर ही आते।
इनको संभाल के रखना हरदम,
तुम कहीं भी आते-जाते॥
परिचय: सुलोचना परमार का साहित्यिक उपनाम ‘उत्तरांचली’ है,जिनका जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में श्रीनगर गढ़वाल में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं। उत्तराखंड राज्य के देहरादून की निवासी श्रीमती परमार की शिक्षा स्नातकोत्तर है।आपकी लेखन विधा कविता,गीत,कहानि और ग़ज़ल है। हिंदी से प्रेम रखने वाली `उत्तरांचली` गढ़वाली में भी सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान, महिमा साहित्य रत्न-२०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान तथा विभिन्न श्रवण कैसेट्स में गीत संग्रहित होना है। आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता,गीत,ग़ज़ल, कहानी व साक्षात्कार के रुप में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में आपके ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं। आपका कार्यक्षेत्र अब लेखन व सामाजिक सहभागिता हैl साथ ही सामाजिक गतिविधि में सेवी और साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्यरत हैं।श्रीमती परमार की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आती रहती हैंl