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बेरोजगार

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली
देहरादून( उत्तराखंड)
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बोझ हूँ धरती का अब
लगने लगा है।
ना समय ठहरा है,
मेरे वास्ते और
ना दर किसी का है खुला।
देखते मुझको ही,
न जाने क्यों लोग
सांकल चढ़ा लेते हैं,
दरवाजों पर सभी।
सूर्य की किरणों से तपता
रास्ता चलता रहा मैं,
मंजिल तक न पहुंचा
मैं कभी।
घाव अब रिस रहे हैं
पाँव के,
दर्द दिल की ओट में
बैठा हुआ है।
योजनाएं न जाने
कितनी बनीं,
फिर भी भागता रहा
मैं रात-दिन।
पिछले दरवाजे से
घुसपैठ मैं कर ना सका…
क्योंकि,
राजनीति में मेरा
कोई आका नहीं था।
डिग्रियों के बोझ से,
अब दब चुका हूँ।
कर्ज लेकर माँ-बाप
ने जो सपने सँजोये थे,
मेरे लिए,उन्हें पूरा
कर ना सका हूँ।
वो कर्ज से दबे कुछ
इस कदर,
कि पिछले साल
उनको कांधा दे चुका हूँ।
क्या पता ईश्वर कभी,
मेरी भी सुध ले
इस चाह में अब तक
बेरोजगार हूँ…
और बेरोजगारों
की लाइन में खड़ा हूँ।

परिचय: सुलोचना परमार का साहित्यिक उपनाम उत्तरांचली’ है,जिनका जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में श्रीनगर गढ़वाल में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं। उत्तराखंड राज्य के देहरादून की निवासी श्रीमती परमार की शिक्षा स्नातकोत्तर है।आपकी लेखन विधा कविता,गीत,कहानि और ग़ज़ल है। हिंदी से प्रेम रखने वाली `उत्तरांचली` गढ़वाली में भी सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मानमहिमा साहित्य रत्न-२०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान तथा विभिन्न श्रवण कैसेट्स में गीत संग्रहित होना है। आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता,गीत,ग़ज़लकहानी व साक्षात्कार के रुप में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में आपके ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं। आपका कार्यक्षेत्र अब लेखन व सामाजिक सहभागिता हैl साथ ही सामाजिक गतिविधि में सेवी और साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्यरत हैं।श्रीमती परमार की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आती रहती हैंl

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