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नया दर्पण

डोली शाह
हैलाकंदी (असम)
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आज ज्यों ही विद्यालय से घर आई, बेटा सुधीर आकर बोला-‘बिल पास हो गया।’

‘…क्या ?’
‘…माँ, महिला आरक्षण बिल पास हो गया।’
‘…वाह ,सच्ची!’
दोनों बैठकर घंटों टेलिविजन पर नजरें गड़ाए रहे, सुनते रहे। देख तो मैं भी रही थी, लेकिन बात-बात में सुधीर का महिलाओं के पक्ष में बोलना मुझे गद-गद कर रहा था।
‘…माँ आप बैठो, मैं गरमा- गरम कॉफी बना कर लाता हूँ।’
‘जरूर,… मदद लगे तो बताना।’
अकेली बैठी देखती रही, सुधीर की हर उस भावना को महसूस कर रही थी कि इतने में…
‘माँ, काफी…। सचमुच इस बिल को यदि अच्छे से लागू किया गया तो, लड़कियों के लिए एक सुनहरा मौका बनकर सामने आएगा, जिन स्थानों पर लड़कियों की नगण्य संख्या थी, वहाँ लड़कियों की उपस्थिति पूरी व्यवस्था को बदल देगी।’
‘…हाँ बेटा। तुम देखना, लड़की यदि किसी मैटर को पेश करती है तो पूरी तरह से कुरेद कर, समझ कर अप्रत्यक्ष पहलुओं को भी सामने लाती है, लेकिन वही यदि एक पुरुष द्वारा किया जाता है तो, गंभीरता की कमी तो होती ही है, दोनों में जमीन-आसमान का अंतर भी हो जाता है।’
‘…हाँ माँ, मैं भी विद्यालय में महसूस करता हूँ।
(इतने में सुधीर के पिता का प्रवेश)
‘….क्या बात है ३३ फीसदी आरक्षण के बिल को लेकर इतनी दिलचस्पी!’
‘…हाँ पापा, इससे पूरे भारत की महिलाओं को सम्मान मिलेगा…।’
‘…हाँ बेटा, (पिता मुस्कुरा कर) पर ये इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है ?’
‘…इसकी बीवी भी तो ३३ फीसदी की लिस्ट में आएगी …।’ माँ बोली।
‘…पापा आप लोग ना…।’
सचमुच आज मुझे अपने बेटे पर गर्व महसूस हो रहा था। उसकी पत्नी कितनी सौभाग्यशाली होगी, जिसकी सोच आज इस उम्र में इतनी अच्छी है तो आगे… लेकिन हाँ, यह सोच भारत के हर उस नौजवान की होनी होगी, तभी हम अपने देश को एक नया दर्पण दिखाने में कामयाब हो पाएंगे।
‘…हाँ, मगर असली महिला दिवस तो आज होना चाहिए।’
‘…हाँ सचमुच, चलो माँ, आज एक पार्टी आपकी तरफ से…।’