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नयी ऊर्जा का संचार करती है `दोस्ती`

ललित गर्ग
दिल्ली

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अन्तर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस-४ अगस्त विशेष……
अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस हर वर्ष अगस्त माह के पहले रविवार को मनाया जाता है। इस दिवस का विचार पहली बार २० जुलाई १९५८ को डॉ. रामन आर्टिमियो ब्रैको द्वारा प्रस्तावित किया गया था। यह दिवस जाति,रंग या धर्म के बावजूद सभी मनुष्यों के बीच दोस्ती और बंधुता-भाईचारा(फैलोशिप) को बढ़ावा देता है। हालांकि,दोस्ती का यह त्योहार दुनियाभर में अलग-अलग तिथियों को मनाया जाता है,पर इसके पीछे की भावना हर जगह एक ही है-दोस्ती का सम्मान। इस दिन दोस्त एक-दूसरे को उपहार,कार्ड देते हैं। एक-दूसरे को फ्रेंडशिप बैंड बांधते हैं। दोस्तों के साथ पूरा दिन बिताकर अपनी दोस्ती को आगे तक ले जाने व किसी भी मुसीबत में एक-दूसरे का साथ देने का वादा करते हैं।
सभी तरह के बंधन एवं संकीर्णताओं को तोड़कर आपस में प्रेम, सम्मान और परस्पर सौहार्द बढ़ाने का संदेश देने वाले इस अनूठे त्योहार की प्रासंगिकता आधुनिक समय में बढ़ती जा रही है,क्योंकि आज मानवीय संवेदनाओं एवं आपसी रिश्तों की जमीं सूखती जा रही है। ऐसे समय में एक-दूसरे से जुड़े रहकर जीवन को खुशहाल बनाना और दिल में जादुई संवेदनाओं को जगाने का रिश्ता दोस्ती ही है। अन्तर्राष्ट्रीय फ्रेण्डशिप दिवस यानी मित्रता दिवस सभी गिले-शिकवे भूल दोस्ती के रिश्ते को विश्वास,अपनत्व एवं सौहार्द की डोर से मजबूत करने का दिन है। आजकल सोशल मीडिया की वजह से यह दिवस बहुत लोकप्रिय हो रहा है।
दोस्ती वह रिश्ता है,जो आप खुद तय करते हैं,जबकि बाकी सारे रिश्ते आपको बने-बनाए मिलते हैं। जरा सोचिए कि,एक दिन अगर आप अपने दोस्तों से नहीं मिलते हैं,तो कितने बेचैन हो जाते हैं और मौका मिलते ही उसकी खैरियत जानने की कोशिश करते हैं। आप समझ सकते हैं कि यह रिश्ता कितना खास है। आज जिस तकनीकी युग में हम जी रहे हैं,उसने लोगों को एक-दूसरे से काफी करीब ला दिया है लेकिन साथ-ही-साथ इसी तकनीक ने हमसे सुकून का वह समय छीन लिया है,जो हम आपस में बांट सकें। आज हमने पूरी दुनिया को तो मुट्ठी में कैद कर लिया है,लेकिन हम खुद में इतने मशगूल हो गये हैं कि एक तरह से सारी दुनिया से कट से गये हैं।
एमर्सन ने कहा है कि-“अच्छा मित्र प्राप्त करने से पहले अच्छा मित्र बनना आवश्यक है।” मित्रता की इस भावना को बल देने के लिये मित्रता दिवस की आवश्यकता है,क्योंकि मित्रता दिवस मजबूत बनाता है हमारा संकल्प,हमारी जिजीविषा,हमारी संवेदना लेकिन उसके लिये चाहिए समर्पण एवं अपनत्व की गर्माहट। यह जीना सिखाता है,जीवन को रंग-बिरंगी शक्ल देता है। प्रेरणा देता है कि ऐसे जिओ कि खुद के पार चले जाओ। ऐसा कर सकें तो हर अहसास,हर कदम और हर लम्हा खूबसूरत होगा और साथ-साथ सुन्दर हो जायेगी जिन्दगी। सुकरात ने कहा है कि-“मित्रता करने में धीमे रहें,लेकिन एक बार जब मित्रता हो जाये तो दृढ़ और सतत बने रहें।”
प्रश्न उभरता है कि इंसान के जीवन में इतना प्यारा तोहफा होने के बावजूद उसके जीवन में मैत्री-भाव का इतना अभाव क्यों ? क्यों है इतना पारस्परिक दुराव ? क्यों है वैचारिक वैमनस्य ? क्यों जनमता है मतभेद के साथ मनभेद ? ज्ञानी,विवेकी,समझदार होने के बाद भी आए-दिन मनुष्य लड़ता-झगड़ता है। विवादों के बीच उलझा हुआ तनावग्रस्त खड़ा रहता है। ऐसे समय में दोस्ती का बंधन रिश्तों में नयी ऊर्जा का संचार करता है। दोस्ती के बहुत फायदे हैं,शोध
कम्पनी गैलप के अध्ययन के अनुसार, कार्यक्षेत्र में दोस्ताना माहौल होना, कर्मियों में कार्य संतुष्टि की भावना को बढ़ाता है। लोग बेहतर और ज्यादा काम कर पाते हैं। यहां तक कि कार्यक्षेत्र में एक अच्छा दोस्त होना ही काम से हमारे जुड़ाव को ५० प्रतिशत तक बढ़ा देता है।
मित्र,सखा,दोस्त,चाहे किसी भी नाम से पुकारो,दोस्त की कोई एक परिभाषा हो ही नहीं सकती। हमें तन्हाई का कोई साथी चाहिए, खुशियों का कोई राजदार चाहिए और गलती पर प्यार से डांटने-फटकराने वाला चाहिए। यदि यह सब खूबी किसी एक व्यक्ति में मिले तो निःसन्देह ही वह आपका दोस्त होगा,मित्र होगा। वही दोस्त, जिसके रिश्ते में कोई स्वार्थ या छल-कपट नहीं,बल्कि आपके हित, आपके विकास,आपकी खुशियों के लिये जिसमें सदैव एक तड़प एवं आत्मीयता रहेगी। नयी सभ्यता एवं नयी संस्कृति में ऐसी ही मानवीय संवेदनाओं को नई ऊर्जा देने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय फ्रेंडस दिवस मनाया जाना एक सार्थक उपक्रम है।
दुश्मनी की तरह,दोस्ती का भी चक्र होता है। जो हम दूसरों को दे रहे होते हैं,वह हमारे पास भी जरूर लौटता है। भले ही यह वे लोग नहीं हों, जिनकी आपने मदद की थी। एक समय की आपकी अच्छाई,कई स्तरों पर अपना असर दिखाते हुए फैलती रहती है। अपनी सही मंशा, सरलता और सहयोग के भाव से आप दूसरों की जुबान पर ही नहीं, दिलों पर राज करने लगते हैं। और,जब मित्रता स्वाभाविक गुण बन जाता है,तब हम आसपास के लोगों के लिए ही नहीं पेड़-पौधों और पक्षियों के भी दोस्त बन जाते हैं।
सच्चे दोस्त दु:ख और कष्ट के क्षणों में हमारे साथ अपनी मौजूदगी भर से हमें जिंदगी में आगे बढ़ने,संघर्ष करने और दु:ख व पीड़ा को हराकर इस जंग को जीतने की प्रेरणा देते हैं। दोस्त हमारे दु:ख व दर्द को हमसे छीन तो नहीं पाते,पर वे अपनी उपस्थिति से उस दर्द को सहने की हमारी शक्ति जरूर बढ़ा देते हैं। किसी ने बहुत ठीक कहा है-‘‘मैं एक दोस्त ढूंढने गया,लेकिन वहां किसी को नहीं पाया। मैं दोस्त बनने गया और पाया कि वहां कई दोस्त थे।’’
जोसेफ फोर्ट न्यूटन ने कहा कि-“लोग इसलिए अकेले होते हैं,क्योंकि वह मित्रता का पुल बनाने की बजाय दुश्मनी की दीवारें खड़ी कर लेते हैं।” क्षणिक और स्वार्थों पर टिकी मित्रता वास्तव में मित्रता नहीं, केवल एक पहचान मात्र होती हैं ऐसे मित्र कभी-कभी बड़े खतरनाक भी हो जाते हैं। जिनके लिए एक विचारक ने लिखा है-“पहले हम कहते थे,हे प्रभु! हमें दुश्मनों से बचाना,परन्तु अब कहना पड़ता है,हे परमात्मा,हमें दोस्तों से बचाना।’’
मित्रता दिवस दोस्ती को अभिशाप नहीं,वरदान बनाने का उपक्रम है। यह दिवस वैयक्तिक स्वार्थों को एक ओर रखकर औरों को सुख बांटने एवं दुःख बटोरने की मनोवृत्ति को विकसित करने का दुर्लभ अवसर प्रदत्त करता है। इस दिवस को मनाने का मूल उद्देश्य यही है कि दोस्ती में विचार-भेद और मत-भेद भले ही हों,मगर मन-भेद नहीं होना चाहिए,क्योंकि विचार-भेद क्रांति लाता है जबकि मन-भेद विद्रोह। क्रांति निर्माण की दस्तक है,विद्रोह बरबादी का संकेत।
सुप्रसिद्ध अमेरिकी लेखक डेल कार्नेगी ने मित्र बनाने की कला पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं और वे लाखों-करोड़ों की संख्या में बिकती हैं। उन्होंने एक पुस्तक में लिखा है-“मेरी सारी संपत्ति लेकर मुझे कोई एक सच्चा मित्र दे दो।”
मित्रता संस्कृति है,संपूर्ण मानवीय संबंधों का व्याख्या-सूत्र है। लुइस एल. काफमैन ने कहा है कि-“मित्रता का बीज बोएं,खुशियों का गुलदस्ता पाएं”,जबकि देखने में यह आ रहा है कि हम मित्रता का बीज बोने का वक्त ही नहीं तलाश पा रहे हैं। दोस्ती की खेती खुशियों की फसल लेकर आती है,लेकिन उसके लिये पारम्परिक विश्वास की जमीन और अपनत्व की ऊष्णता के बीज भी पास में होने जरूरी हैं। वास्तव में मित्र उसे ही कहा जाता है,जिसके मन में स्नेह की रसधार हो,स्वार्थ की जगह परमार्थ की भावना हो,ऐसे मित्र साँसों की बाँसुरी में सिमटे होते हैं,ऐसे मित्र संसार में बहुत दुर्लभ हैं। श्रीकृष्ण और सुदामा की,विभीषण और श्री राम की दोस्ती इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं।

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