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निभा नहीं सकते

सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश) 
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ज़ख़्म दिल पर जो खा नहीं सकते।
दोस्ती वो निभा नहीं सकते।

जिनमें जज़्बा नहीं है जलने का,
वो अँधेरा मिटा नहीं सकते।

ज़ख़्म कितने मिले हैं उल्फ़त में,
हम किसी को बता नहीं सकते।

वो हमें लाख आज़माएँ पर,
हम उन्हें आज़मा नहीं सकते।

शिद्दत ए दर्द जान लो ख़ुद ही,
हम कलेजा दिखा नहीं सकते।

लाख कोशिश करें भले हम सब,
क़र्ज़ माँ का चुका नहीं सकते।

वो जो रखते हैं संग सी फ़ितरत,
उनको दर्पन दिखा नहीं सकते।

इश्क़ में ऐ ‘फ़राज़’ अब अपना।
ह़ाल जो है छुपा नहीं सकते॥

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