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नील गगन प्रतिबिम्ब चारु शुभ

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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सम्भाषण शुभ आभरण मनुज,
प्रतिबिम्बित मन भाव समझ ले।
समरसता सदभाव सहज नित,
मिटे सकल मन घाव समझ ले।

नीलांचल अरुणाभ भोर जग,
स्वच्छ सत्य आचार समझ ले।
नवांकुरित नित पल्लव कोमल,
नवजीवन आधार समझ ले।

सदा सादगी प्रतिबिम्बित नित,
प्रगति सुपथ निर्माण समझ ले।
नीलकमल नीलाभरण सुभग,
जनहितरत कल्याण समझ ले।

नीलकण्ठ शंकर शिव सुन्दर,
नील सरित जल सिन्धु समझ ले।
नील गगन प्रतिबिम्ब चारु शुभ,
सतरंगी जगबन्धु समझ ले।

नित उन्नति विश्वास दृढ़ता मन,
सरस मधुर समभाव समझ ले।
हालाहल मिथ्या प्रपंच खल,
मिटे नील मन घाव समझ ले।

नीलगाय निश्छल प्रकृति सहज,
बनें बन्धु संसार समझ ले।
नीलाभ मनुज पावन चितवन,
हो सुखमय संसार समझ ले।

नीलवर्ण प्रतिबिम्ब सत्य जग,
भर जीवन नवरंग समझ ले।
विश्वबन्धु सहयोग क्षमा नित,
शान्ति प्रीति बिन जंग समझ ले।

कवि निकुंज अन्तर्मन परहित,
ननिर्मल यश नीलाभ समझ ले।
प्रकृति मातु सुष्मित भू हरितिम,
नवप्रभात प्रतिबिम्ब समझ ले।

नीलाम्बर सज इन्द्रधनुष शुभ,
स्वस्थ सोच बिन रोग समझ ले।
सबका हित सब हो सुखमय जग,
राष्ट्र धर्म नित योग समझ ले।

शीलवान पौरुष संबल पथ,
विजय साहसी धीर समझ ले।
अनमोल कीर्ति प्रतिबिम्ब विनत,
सोमाकर मुस्कान समझ ले॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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