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हथियार

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
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हथियार,
हाँ,जरूरी नहीं
दो धारी तलवार ही हो,
बाणों की बौछार ही हो
धनुष की टंकार ही हो,
ग्रेनाइट बिछी सड़कें हो
मंदिर-मस्जिद का वार हो,
कटाक्ष में बड़ी धार ही हो।

हथियार…
उठता है जुर्म के खिलाफ,
होता है जुर्म का पलड़ा भारी
उठ जाती है अनेक आवाज,
लगाए जाते हैं नारे
गूँज जाती है दिशाएं,
भयभीत हो जाती है सरकारें।

हथियार…
उठता है अपने हक के लिए,
जो मांगने से नही मिलता
गुजर जाती पीढ़ियाँ,
यूँ ही दर्द भरी मुस्कराहट लिए
उपजता है तब क्रोध,
संचालित होती है क्रांति।

हथियार…
उठता है अस्तित्व को खंगालने पर,
सदियों से त्रस्त है जो नारी
पिता-पति-पुत्र से,
जो आज भी है हारी
अस्तित्व की खोज में,
भटकती है मारी-मारी।

हथियार…
उठता है न्याय के कटघरे में,
मन में अनेक आशा लिए
बिक जाता है भगवान,
स्वर्ण की चमक से
उठ जाता है भरोसा इंसाफ से,
बन जाता है स्वयं न्यायाधीश
न्याय लेता है सत्य के पक्ष में,
होता है अन्याय का खात्मा।

हथियार…
उठता है,उठता रहेगा,
इस स्पर्धा के युग में
अस्मिता को बचाने के लिए।
सजग नागरिक हो आप,
कभी-कभी यह भी बताने के लिए॥

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

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