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न हम, न तू ही रहेगा

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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सभी कुछ धरा पर धरा ही रहेगा,
मानवता व ममता है जिन्दा यहाँ
वही अंत तक बस जिन्दा रहेगा।

दिया हर सम्मान ही, आपका अभिमान हो,
इसी में आपकी शान व गुणगान हो
यही दुनिया में आपकी अंतिम पहचान हो।

होगी स्नेह निज हर्षा से, सौहार्द की वर्षा,
जैसे गर्मी और सूखे में बारिश की बरसा
जिन्दगी यही, जो न सूखे, न सौहार्द को तरसा।

स्वर्ग यहीं है, नरक भी यहीं मिलेगा,
करनी का सुफल यहीं सब मिलेगा
भक्ति और शक्ति का सुयश खिलेगा।

ये सोना, ये चाँदी, ये बंगला, ये गाड़ी,
रखा यूँ रहेगा, बंद होगी मेरी और तेरी ये नाड़ी
जिन्दगी के सभी राज दफन होकर भी भारी।

बहकती अदाएँ, उफनता घमंड, लड़ और लड़ाई,
इस क़ाली कमाई से, झूठी बड़ाई
होकर रहेगा, धरा पर धराशायी।

यूँ ईश्वर की मन्नत मानते- मनाते,
न तुम कुछ हो पाते, न हम ही अघाते
उन्हीं का दिया सब, उन्हीं को चढ़ाते।

सभी कुछ धरा पर धरा ही रहेगा,
करम का लिखा जो, हो के रहेगा
धरम-करम सारा अच्छा, बचा ये रहेगा,

मिटाओ ये जकड़न, कलेजे की धड़कन,
गरीबों पर अकड़न, दौलत की सिकुड़न
तभी ये उजाला, सवेरा रहेगा।

न तू छोटा दिखता, न मैं बड़ा रहूँगा,
मुहब्बत और मिल्लत से दोनों रहूँगा,
फरियाद किसकी मैं किससे कहूँगा ?

झुकें थोड़ा हम-तू, तभी ये वतन भी रहेगा,
शिक्षित बनेंगे सभी, तभी ज्ञान का अन्तर मिटेगा
तभी ये अँधेरा और कुहरा छंटेगा।

उठा लो कलम, भर लो स्याह लहू की,
भाल भारत का, मशाल हिन्दी की
हृदय हो विशाल पहाड़ों का, दहाड़ शेरों की।

शांति का दर्पण हटाए जहाँ, अकड़ता ये भारत गरजने लगेगा,
सभी कुछ धरा पर धरा ही रहेगा।
न तुम ही रहोगे, बस ख्वाब ही दुनिया में जिंदा रहेगा॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”