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पंच प्यारे

डॉ.चंद्रदत्त शर्मा ‘चंद्रकवि’
रोहतक (हरियाणा)
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आज विदाई पार्टी है,सभी के चेहरे उदास भाव की तख्ती बनकर लटक रहे हैं। बारहवीं कक्षा स्कूली शिक्षा का अंतिम पड़ाव होता है,जिसे पार करके जीवन के प्रत्यक्ष अनुभवों का सामना और पिछली यादों को संजोए रखना होता है।
छात्रों के साथ-साथ आज अध्यापकों का मन कमल भी मुरझाया-सा लग रहा था। लगे भी क्यों न,स्कूल की सबसे होनहार कक्षा की विदाई जो थी। एक थे सबके प्रिय गुरुजी- शशिकांत। कहने को तो गुरु थे,पर बच्चों के बीच एक दोस्त की तरह रहते थे,सबके सुख-दु:ख की चिंता सबसे मिल-जुलकर रहना, सबकी खैर-खबर पूछ लेना उनका स्वभाव था। बच्चे भी उनसे बेहद प्रेम करते थे और अपनी सब बातें उनसे साझा करते थे।
आज अंतिम संदेश भी उनको ही देना था,उन्होंने कहा,-“देखो,प्यारे छात्रों! यूँ तो सभी छात्र होनहार और प्रिय हैं पर जैसे देश- धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोविंद सिंह ने बलिदान के लिए शीश मांगे थे और सिर्फ ५ आदमी आए थे। ठीक ऐसे ही मेरे भी सबसे प्रिय ५ छात्र है,जिनसे मैं इस समाज-राष्ट्र परिवार और विद्यालय के लिए उनके सुखों का बलिदान मांगता हूँ।” गुरु जी ने एक साँस में ही कह डाला।
एक छात्रा जिसका नाम चंपा था,उसने विस्मय से पूछा,-“जी,यह कैसा बलिदान ?” उसके साथ मौन विस्मय में चमेली, बुलबुल,निशु,परी भी थी।
“देखिए,आप पांच छात्राएं जो कक्षा में सर्वोपरि हैं उनसे यही मांगता हूँ कि वह अपने स्कूल-समाज अपने कुल व अपने राष्ट्र का नाम रोशन करें,क्योंकि श्वसन-भोजन-प्रजनन ये तो सभी जीव करते हैं। इंसान एक श्रेष्ठ प्राणी है,और उसका धर्म श्रेष्ठ करना है। सन्मार्ग पर चलकर आगे बढ़ना। इंसानियत पथ पर चलकर कड़े परिश्रम से सबके दिल पर छा जाना। बस यही करने के लिए आपसे ऐश्वर्य-सुख व कुसंगति का बलिदान मांगता हूँ। तभी तुम मेरे पंच प्यारे कहलाओगे।” ऐसा सुनकर सभा के सरोवर में पांच कमल खिल उठे। यह सुनकर पूरी सभा तालियों से गूंज उठी।

परिचय–डॉ.चंद्रदत्त शर्मा का साहित्यिक नाम `चंद्रकवि` हैl जन्मतारीख २२ अप्रैल १९७३ हैl आपकी शिक्षा-एम.फिल. तथा पी.एच.डी.(हिंदी) हैl इनका व्यवसाय यानी कार्य क्षेत्र हिंदी प्राध्यापक का हैl स्थाई पता-गांव ब्राह्मणवास जिला रोहतक (हरियाणा) हैl डॉ.शर्मा की रचनाएं यू-ट्यूब पर भी हैं तो १० पुस्तक प्रकाशन आपके नाम हैl कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचना प्रकाशित हुई हैंl आप रोहतक सहित अन्य में भी करीब २० साहित्यिक मंचों से जुड़े हुए हैंl इनको २३ प्रमुख पुरस्कार मिले हैं,जिसमें प्रज्ञा सम्मान,श्रीराम कृष्ण कला संगम, साहित्य सोम,सहित्य मित्र,सहित्यश्री,समाज सारथी राष्ट्रीय स्तर सम्मान और लघुकथा अनुसन्धान पुरस्कार आदि हैl आप ९ अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में शामिल हो चुके हैं। हिसार दूरदर्शन पर रचनाओं का प्रसारण हो चुका है तो आपने ६० साहित्यकारों को सम्मानित भी किया है। इसके अलावा १० बार रक्तदान कर चुके हैं।

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