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निपटारा

डॉ.पूजा हेमकुमार अलापुरिया ‘हेमाक्ष’
मुंबई(महाराष्ट्र)

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दरवाजे पर किसी ने थी घंटी बजाई,
हमने भी पुरजोर बेटे को आवाज थी लगाई,
दिया आदेश दरवाजा खोलने का…
दरवाजा उघेड़ा तो,
सामने खड़ी थी सोना बाई।
बेटे ने कहा,-
“आओ मऊसी आओ”
यह देख वह भी ज़रा मुस्कुराई,
भैया को राम-राम करती वह सीधे अंदर चली आई।
देख बाई की सूरत,
पिछले महीने के हिसाब की याद थी आई
निकाल बटुआ,
बाई को आवाज लगाई
सुन हमारी कोकिल-सी ध्वनि वह भी दौड़ी चली आई।
‘जी बीबीजी’ की मधुर वाणी उसके मुख से आई,
हमने भी आनन-फानन में बोल दिया
चलो तुम्हारा निपटारा कर दें।

सुन निपटारे की बात,
आँख थी उसकी भर आई…
अजब-गजब लीला है तेरी प्रभु,
कुछ कहे बिना क्यों इसने नदिया थी बहाई।
ये बात हमारे कुछ समझ न आई,
पूछे बिना भी हमसे न रहा गया…!
क्यों भई सोना ?
बिन वजह क्यों बहा रही हो आँसूओं की नदी!

सुन बित्तेभर बात हमारी,
कैंची-सी जुबां फिर उसने चलाई…
‘बीबीजी करो ना यूँ हमारा हिसाब-किताब,
हम तो हो जाएंगे बेहाल।
आधी गृहस्थी चलती है हमारी आपके ही चौके से,
जो कुछ बच जाता है रात-सवेरे का…
बांध आपकी बहू दे देती है हमें सरपट-सा,
रोज रोज इतना स्वादिष्ट खाना कहां से मेरे घर आएगा ?
खा लेते हैं दो टूक,
मेरे बच्चों की उम्मीदें सिमटकर कहीं टूट जाएगी…!
बेबी-बाबा के पुराने खिलौने भी तो मेरे ही बच्चों को जाते हैं,
मेरी कहां औकात,जो उन्हें ऐसे खिलौने दिला पाऊं!
कैसे मैं उन्हें बता पाऊंगी कि,
कर दिया है मेरा इस घर से बोरी बिस्तर गोल।

अलख जगाए बैठे रहते हैं रोज मेरे घर आने की,
मेरे पहुंचते ही टूट पड़ते हैं मुझ पर
जैसे कर रहे थे अपनी तृप्ति के लिए मेरा इंतजार,
देख चमक उनकी आँखों की,
मैं फूली नहीं समाती हूँ।
मैं भी अपने बच्चों को देख जरा मुस्कुरा जाती हूँ,
कितनी बार तो खुशी से भूखी-प्यासी ही सो जाती हूँ…
है बड़ा अहसान इस घर का मुझ पर।
पुण्य किए होंगे पिछले जन्म में जो आप जैसे मालिक पाई हूँ,
बीबीजी करो न मेरा हिसाब-किताब।
याद है क्या आपको…?
पिछले साल पड़ गया था मेरा मुन्ना बीमार,
दर-दर भटकी,रोई और गिड़गिड़ाई भी थी न जाने कितनों के आगे…
कोई न मेरा था उस वक्त हाथ थामने वाला,
तब आपने ही तो अपनों से बढ़ कर सारे फर्ज निभाए थे।
कैसे जाऊं भूल आपके अपनेपन और कृतज्ञता को…!’

वो कुछ और कहती,
रहा न मुझसे गया…
चल अब चुप कर सोना,
क्या रुला कर ही मानेगी!
कितने काम पड़े हैं घर में,
कब तू उन्हें निपटाएगी ?
न जाने छोटी-छोटी बातें तेरी कब समझ में आएगी ?
पगली आज है पहली तारीख,
पिछले महीने का करना है मुझे तेरा हिसाब।
वरना घर का राशन कहां से तू भरवाएगी ?
अब ताक न मुँह मेरा,
सरपट झाड़ू-पोंछा और बर्तन तू निपटा…॥

परिचय–पूजा हेमकुमार अलापुरिया का साहित्यिक उपनाम ‘हेमाक्ष’ हैl जन्म तिथि १२ अगस्त १९८० तथा जन्म स्थान दिल्ली हैl श्रीमती अलापुरिया का निवास नवी मुंबई के ऐरोली में हैl महाराष्ट्र राज्य के शहर मुंबई की वासी ‘हेमाक्ष’ ने हिंदी में स्नातकोत्तर सहित बी.एड.,एम.फिल (हिंदी) की शिक्षा प्राप्त की है,और पी.एच-डी. की शोधार्थी हैंI आपका कार्यक्षेत्र मुंबई स्थित निजी महाविद्यालय हैl रचना प्रकाशन के तहत आपके द्वारा आदिवासियों का आन्दोलन,किन्नर और संघर्षमयी जीवन….! तथा मानव जीवन पर गहराता ‘जल संकट’ आदि विषय पर लिखे गए लेख कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैंl हिंदी मासिक पत्रिका के स्तम्भ की परिचर्चा में भी आप विशेषज्ञ के रूप में सहभागिता कर चुकी हैंl आपकी प्रमुख कविताएं-`आज कुछ अजीब महसूस…!`,`दोस्ती की कोई सूरत नहीं होती…!`और `उड़ जाएगी चिड़िया`आदि को विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्थान मिला हैl यदि सम्म्मान देखें तो आपको निबन्ध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार तथा महाराष्ट्र रामलीला उत्सव समिति द्वारा `श्रेष्ठ शिक्षिका` के लिए १६वा गोस्वामी संत तुलसीदासकृत रामचरित मानस पुरस्कार दिया गया हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा में लेखन कार्य करके अपने मनोभावों,विचारों एवं बदलते परिवेश का चित्र पाठकों के सामने प्रस्तुत करना हैl

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