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पंजाब:चिंतन करे कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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आखिरकार पंजाब कांग्रेस-सरकार में लगी चिंगारी सुलग कर मुख्यमंत्री की कुर्सी को जला ही गई। विधायकों और पंजाब सरकार के कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए कांग्रेसी नवजोत सिंह सिद्धू काफी समय से तकलीफ बने हुए थे,जो सोनिया गाँधी तक को उलझा गए। संगठन की रीति-नीति,निर्णय और राजनीति बनाम रणनीति के बाद अपमानित हुए कैप्टन ने इस्तीफा देकर संगठन पर जो सवाल उठाए हैं,वे कांग्रेस के लिए बेहद चिंतन के हैं। हालांकि,इस पर कोई चिंतन होगा,इसकी उम्मीद अब कांग्रेस नेतृत्व से कम ही है़।
दरअसल,बीते दिनों राजस्थान में भी ही ऐसा कुछ हो चुका है़,भले ही वहां बुजुर्ग मुख्यमंत्री को संगठन ने हटाया नहीं,और वे हटे भी नहीं,पर अंदर ही अंदर सुलग रही है,जो कभी भी पंजाब की तरह सरकार को ले डूबेगी।
अब बात दल बदलने वाले सिद्धू की,तो राजनीति और संगठन को भी हँसी-मजाक समझने वाले इस व्यक्ति को पंजाब में कांग्रेस संगठन की बागडोर सौंप कर आलाकमान ने जो गलती की,कैप्टन का त्याग-पत्र उसी का फल है।
सिद्धू को मुख्यमंत्री बनाने के खिलाफ सिर्फ
कैप्टन ही नहीं,बल्कि पंजाब के कांग्रेसी भी हैं लेकिन दलबदल की राजनीति से ऊपर आए कौन ? भाजपा में अवसर देखकर आए और इसी के लिए फिर कांग्रेसी हुए क्रिकेटर-नेता सिद्धू के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और सेनाध्यक्ष से जो सम्बन्ध हैं,वो ही उनकी कुर्सी का रोड़ा है। अब तो कैप्टन ने खुला कह ही दिया है़,इसलिए अगर कैप्टन से कुर्सी लेकर कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इसे खिलाड़ी-हास्य कलाकार-राजनेता नवजोत सिंह को सौंपेगा तो राज्य में बगावत बनाम असंतोष होने से इंकार नहीं किया जा सकता।
दूसरी बात-भले ही देश का प्रमुख दल भाजपा कैसा भी हो,और कांग्रेस उसका विरोध करती है़,पर इससे अनुशासन और कड़वे निर्णय लेना कांग्रेस को सीखना चाहिए,अब तो यह और आवश्यक हो चला है़। आगामी समय में विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने गुजरात में जो बदलाव किया,वो कितनी जल्दी और आराम से हुआ,ये एक कल्पना ही है़,जबकि इसके उलट कांग्रेस पहले राजस्थान में फैसला नहीं ले सकी तो अब पंजाब भी हाथ से उड़ता जा रहा है़। भाजपा की दूरदृष्टि से वैसे कांग्रेस असम का बदलाव भी अनुभव कर सकती है़,तो कर्नाटक का भी। केन्द्र की सत्ता से दूर एवं बेहद कम राज्यों में सत्तासीन कांग्रेस के उच्च नेतृत्व को ये बात बेहतर ढंग से समझनी ही नहीं,स्वीकार करके माननी भी होगी कि,जोखिम,अनुशासन और समय पर लिए गए कड़े-सख्त निर्णय से ही साख बनेगी। फिर वो दिल्ली हो या मध्यप्रदेश।

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