अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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भारत सहित विश्व के ५० से ज्यादा देशों में गूंजे पेगासस जासूसी कांड की जांच उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति द्वारा किए जाने को कुछ लोग ‘न्यायिक सक्रियता’ से जोड़कर भी देख सकते हैं। विपक्ष और कानूनविदों ने न्यायालय के इस आदेश का स्वागत करते हुए इसे ‘ऐतिहासिक’ बताया है। उन्होंने कहा कि इससे पेगासस मामले में सच सामने आ जाएगा कि भारत सरकार ने निजता की रक्षा के कानून का उल्लंघन किया है या नहीं। इस पूरे मामले में मोदी सरकार का रवैया टालमटोल और अजब चुप्पी भरा रहा है। सरकार यह तो कहती रही है कि उसने किसी की जासूसी नहीं कराई। अगर उसने नहीं कराई तो फिर किसने,क्यों और किसके आदेश से कराई? यह जानने का हक देश के हर नागरिक को है। और यह भी कि देश में संवैधानिक सरकार के अलावा वो कौन-सी समानांतर ताकत है,जो हमारे देश में किसी की भी जासूसी करवा सकती है ? विपक्ष सहित पेगासस जासूसी का शिकार हुए कई लोगों ने मांग की कि इस पूरे मामले का खुलासा होना चाहिए,लेकिन सरकार ने पहले तो जासूसी से ही इंकार किया। तब लोग इस मामले को लेकर न्यायालय गए। सरकार ने न्यायालय में हलफनामा देकर विशेषज्ञों की एक समिति जांच की बात कही। हलफनामे में कहा कि कुछ ‘निहित स्वार्थों’ द्वारा दिए किसी भी गलत विमर्श को दूर करने और उठाए गए मुद्दों की जांच करने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाएगा। इस पर याचिकाकर्ताओं को आपत्ति थी। याचिकाकर्ताओं के आग्रह पर न्यायालय ने उसके द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति को पेगासस जासूसी मामले में ७ बिंदुओं पर जांच करने और महत्वपूर्ण सिफ़ारिशें करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देने मात्र से न्यायालय मूक दर्शक बना नहीं रह सकता। न्यायालय के आदेश पर भाजपा की सधी हुई प्रतिक्रिया थी कि यह आदेश मोदी सरकार के न्यायालय में दिए हलफनामे के अनुरूप ही है।
न्यायालय के आदेश के मुताबिक समिति को जल्द रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा गया है। इसके अलावा समिति अपनी जरूरत और सुविधानुसार इस मामले से जुड़े किसी भी अन्य मामले पर विचार कर उसकी जांच कर सकती है।
भारत के कुछ मीडिया अधिष्ठानों सहित १७ अंतरराष्ट्रीय मीडिया के कंसोर्टियम ने पेगासस परियोजना के तहत इस साल अगस्त में यह खुलासा किया था कि इजरायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी के पेगासस स्पायवेयर के जरिये नेता, पत्रकार,कार्यकर्ता,उच्चतम न्यायालय के अधिकारियों के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी की गई,या वे संभावित निशाने पर थे। फ्रांस स्थित गैर-लाभकारी संस्था फॉरबिडेन स्टोरीज ने सार्वजनिक करते हुए एक ऐसे डेटाबेस को प्राप्त किया था,जिसमें दुनियाभर के ५० हजार से अधिक लोगों के नंबर थे और इनकी पेगासस के जरिए निगरानी कराने की संभावना है।
खास बात यह है कि भारत में जिन लोगों की जासूसी की गई,उनमें सत्तारूढ़ भाजपा के भी कुछ लोग हैं।
इस पूरे मामले पर संदेह तब और गहराया जब स्पायवेयर बनाने वाली कंपनी ने सफाई दी कि वह यह साॅफ्टवेयर केवल सरकारों को ही बेचती है। इस पर भारत सरकार ने न तो ‘हाँ’ कहा और न ‘ना’ कहा,जबकि सरकार के रक्षा व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने पेगासस स्पायवेयर के इस्तेमाल से इनकार कर दिया।
पेगासस कांड के खुलासे के बाद पूरी दुनिया में तहलका मच गया। कुछ सरकारों ने इसकी जांच भी शुरू करा दी। कैंम्ब्रिज विश्वविदयालय ने यूएई के साथ अपने ४१२५ करोड़ रू. के समझौते को रद्द कर दिया, क्योंकि यूएई पर आरोप है कि उसने ब्रिटेन के कई नंबरो को निगरानी के लिए निशाने पर लिया था।
जिन लोगों की जासूसी हुई,उनमें से १६१ भारतीयों के काम उजागर हो चुके हैं। यहां यह भी गौरतलब है कि,इस जासूसी उपकरण को उन मोबाइल फोन में आसानी से लगाया जा सकता है,जो आईओएस १४.६ और एड्रांयड वर्जन पर चलते हैं। इस स्पायवेयर के जरिए निगरानीकर्ता सम्बन्धित व्यक्ति के सारे पाठ्य संदेश,पासवर्ड,काॅल ट्रेक और लोकेशन ट्रैक कर सकता है। सामने वाले को पता भी नहीं चलता।
दरअसल,पेगासस ग्रीक माइथाॅलाजी में पंख के जरिए उड़ने वाले घोड़े का नाम है। पहली बार इसका पता २०१६ में लगा था,जब एक अरब मानवाधिकार कार्यकर्ता की जासूसी हुई।
पेगासस स्पायवेयर खरीदना सबके बस की नहीं है। पेगासस सरकारी एजेंसियों से लक्षित प्रति १० आईफोन में यह स्पायवेयर लगाने के लिए ४.८२ करोड़ रू. तथा १० एंड्रायड फोन के लिए ३.७४ करो़ड़ रू. प्रभार करती है। जाहिर है कि,इतनी महंगी जासूसी सरकारें या बहुराष्ट्रीय कंपनियां ही करा सकती है।
भारत में उच्चतम न्यायालय के आदेश के संदर्भ में सवाल यह है कि क्या समिति निष्पक्ष तरीके से जांच कर पाएगी? उसे सरकार का सहयोग कितना मिलेगा ? अगर यह जासूसी सरकार ने ही कराई है तो वो यह राज क्यों उजागर होने देगी ? यदि सरकार ने नहीं कराई है तो वो कौन है,जो इतना ताकतवर है ? इन सब बातों के खुलासे होने जरूरी हैं। भारत में पेगासस कांड एक राजनीतिक मुद्दा भी बन चुका है,लेकिन असल सवाल आम नागरिक की निजता की सुरक्षा का है। लोकतंत्र में इसे बाधित करने का अधिकार किसी को नहीं है। अलबत्ता जांच समिति के निष्कर्ष राजनीतिक बवंडर पैदा करेंगे,यह तय है। आगे-आगे देखिए, होता है क्या ?