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पर्यावरण संरक्षण में अग्निहोत्र यज्ञ की उपयोगिता

सुश्री नमिता दुबे
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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पर्यावरण दिवस विशेष…..

स्वर्ग कामोयज्ञेत-अर्थात स्वर्ग की कामना से यज्ञ करो। प्रकृति ओर मानव का सृष्टि के आरंभ से ही अन्योन्यश्रित संबंध रहा है। हमारी प्राचीन धार्मिक परम्पराएं समूचे जीवन को सुख- समृद्धि प्रदान करने के साथ ही विज्ञान सम्मत भी है,किन्तु विडम्बना ही कहिए कि हमने विकास की अंधाधुंध दौड़ में जिस भारतीय वैदिक आधार को नज़र अंदाज कर दिया,वहीं विदेशों में भारतीय वैदिक ज्ञान पर निरंतर शोध कर भारतीय संस्कृति को परखा और सराहा जा रहा है। प्राचीनकाल में पंच महायज्ञ का प्रचलन था,धार्मिक अनुष्ठानों के समय वृक्षों में भगवान का वास मानकर पीपल,बरगद,नीम,आंवला,आम,अशोक,बेल,पारिजात आदि की पूजा की जाती थी। भारत में पीपल तो आज भी पूर्वजों का वास मानकर पूजा जाता है,किन्तु वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार पीपल सर्वाधिक ऑक्सीज़न का स्त्रोत है। ऋषि-मुनि यज्ञ को सफलता और सिद्धिकारक के साथ ही वायुमंडल की शुद्धि का कारक भी मानते थे,यही कारण था कि उस समय लोग निरोगी और दीर्घायु होते थे।

समय के साथ साथ विकास के चरम पर पहुँच मानव स्वयं को प्रकृति का दाता समझने लगा,इसलिए मध्यकाल से ही यज्ञ विकृत और विलुप्त होता गया,किन्तु इसी समय महर्षि दयानंद ने यज्ञ को ज्ञान-विज्ञान का कारक बनाकर उसे आध्यात्मिक मंच पर पुन:प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया।

प्रतिदिन सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अग्निहोत्र करने का विधान वेदों में है,वेद के इन मंत्रों को महर्षि दयानंद ने अपनी पंचमहायज्ञ विधि में प्रस्तुत किया। अत: यहीं से अग्निहोत्र परम्परा का आरंभ माना जाता है। अग्निहोत्र यज्ञ में गौधृत,शक्कर,चावल,केसर,कस्तूरी और आयुर्वेदिक औषधि सोमलता,गिलोय आदि की मंत्रोच्चार से आहुति दी जाती है। अग्नि अमूल्य है,जिससे अनगिनत सूक्ष्म जीवाणुओं का नाश होता है। तपेदिक,चेचक,मलेरिया आदि का इलाज हवन से संभव है। चेचक के टीके के आविष्कारक डॉ .हैफकिन के अनुसार-“घी जलाने से रोग के कीटाणु मर जाते हैं।” फ्रांसिस वैज्ञानिक प्रो.ट्रिलबिर्ट कहते हैं-“जली हुई शक्कर में वायु शुद्ध करने की शक्ति होती है।” डॉ. कर्नल किंग आई.एम.एस. कहते हैं-“घी और चावल में केसर मिलाकर अग्नि में जलाने से प्लेग से बचा जा सकता है।” जर्मनी में अग्निहोत्र फाउंडेशन ने एक शोध की,जिसमें प्रदूषित तालाब के आसपास सूरज की पहली किरण के साथ कंडे,घी और चावल से धुआं किया। कुछ दिनों में ही तालाब का प्रदूषण काफी हद तक कम हो गया। एक सूखे पेड़ पर भी यही क्रिया लगातार पंद्रह दिनों तक अपनाने पर सूखे पेड़ में भी फूल-पत्तियाँ आने लगीं। इस प्रकार वैज्ञानिक और पर्यावरणविदों का मानना है कि यज्ञ में दी जाने वाली आहुतियों से निकलने वाला धुआं आसपास के सम्पूर्ण क्षेत्र को शुद्ध करता है,ऑक्सीज़न बढ़ती है,लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है,वहीं यज्ञ से निकलने वाला उत्सर्जन ओज़ोन परत को संरक्षित भी करता है। यज्ञ की राख़ भी बैक्टेरिया मुक्त होती है,जो मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाती है,शुद्ध वायु की मात्रा बढ़ने से बारिश भी अच्छी होती है और भूजल स्तर में भी वृद्धि होती है।

आज विश्व के अनेक विकसित देश अपने संसाधनों का संरक्षण कर अन्य विकासशील देशों से संसाधन आयात कर रहे हैं। विदेशों में पर्यावरण को लेकर योजनाबद्ध तरीके से इसके निदान के लिए नीतियां बनाई जा रही है,किन्तु भारत में अभी भी जागरूकता की कमी है। उपलब्धियों के साथ संलग्न पर्यावरणीय संकट सम्पूर्ण मानवता के लिए प्रश्नचिन्ह बनता जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरों से हम और हमारी युवा पीढ़ी परिचित तो है,किन्तु प्रयास और सोच में बदलाव लाना अभी भी शेष है। हमारी सामान्य युवा पीढ़ी यज्ञ,होम,आहुति,अग्नि,वृक्ष पूजन को पाखंड ही समझती है,इसलिए जरूरी है कि हम हमारे भविष्य को हमारे वैदिक ज्ञान से अवगत करवायें। पर्यावरण संरक्षण के अन्य उपायों के साथ ही हर व्यक्ति जागरूक हो जाए और संकल्प कर ले कि विज्ञान सम्मत वैदिक ज्ञान से युवा पीढ़ी को परिचित करवाएगा,कम से कम ऊर्जा खपत करेगा,पर्यावरण को संतुलित करने में अपना अमूल्य योगदान देगा,तो इस वैश्विक खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

परिचय : सुश्री नमिता दुबे का जन्म ग्वालियर में ९ जून १९६६ को हुआ। आप एम.फिल.(भूगोल) तथा बी.एड. करने के बाद १९९० से वर्तमान तक शिक्षण कार्य में संलग्न हैं। आपका सपना सिविल सेवा में जाना था,इसलिए बेमन से शिक्षक पद ग्रहण किया,किन्तु इस क्षेत्र में आने पर साधनहीन विद्यार्थियों को सही शिक्षा और उचित मार्गदर्शन देकर जो ख़ुशी तथा मानसिक संतुष्टि मिली,उसने जीवन के मायने ही बदल दिए। सुश्री दुबे का निवास इंदौर में केसरबाग मार्ग पर है। आप कई वर्ष से निशक्त और बालिका शिक्षा पर कार्य कर रही हैं। वर्तमान में भी आप बस्ती की गरीब महिलाओं को शिक्षित करने एवं स्वच्छ और ससम्मान जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। २०१६ में आपको ज्ञान प्रेम एजुकेशन एन्ड सोशल डेवलपमेंट सोसायटी द्वारा `नई शिक्षा नीति-एक पहल-कुशल एवं कौशल भारत की ओर` विषय पर दिए गए श्रेष्ठ सुझावों हेतु मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा और कौशल मंत्री दीपक जोशी द्वारा सम्मानित किया गया है। इसके अलावा श्रेष्ठ शिक्षण हेतु रोटरी क्लब,नगर निगम एवं शासकीय अधिकारी-कर्मचारी संगठन द्वारा भी पुरस्कृत किया गया है।  लेखन की बात की जाए तो शौकिया लेखन तो काफी समय से कर रही थीं,पर कुछ समय से अखबारों-पत्रिकाओं में भी लेख-कविताएं निरंतर प्रकाशित हो रही है। आपको सितम्बर २०१७ में श्रेष्ठ लेखन हेतु दैनिक अखबार द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान से नवाजा गया है। आपकी नजर में लेखन का उदेश्य मन के भावों को सब तक पहुंचाकर सामाजिक चेतना लाना और हिंदी भाषा को फैलाना है।

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