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मन को कर तू शक्तिमय

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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‘मन को कर तू शक्तिमय,ले हर मुश्किल जीत।
काँटों पर गाना सदा,तू फूलों के गीत।’
मनुष्य का जीवन चक्र अनेक प्रकार की विविधताओं से भरा होता है,जिसमें सुख-दु:ख, आशा-निराशा तथा जय-पराजय के अनेक रंग समाहित होते हैं। वास्तविक रूप में मनुष्य की हार और जीत उसके मन की मज़बूती पर आधारित होती है। मन के योग से उसकी विजय अवश्यंभावी है,परंतु मन के हारने पर निश्चय ही उसे पराजय का मुँह देखना पड़ता है ।
मनुष्य की समस्त जीवन प्रक्रिया का संचालन उसके मस्तिष्क द्‌वारा होता है। मन का सीधा संबंध मस्तिष्क से है। मन में हम जिस प्रकार के विचार धारण करते हैं,हमारा शरीर उन्हीं विचारों के अनुरूप ढल जाता है। हमारा मन-मस्तिष्क यदि निराशा व अवसादों से घिरा हुआ है,तो हमारा शरीर भी उसी के अनुरूप शिथिल पड़ जाता है,और हमारी समस्त चैतन्यता विलीन हो जाती है। दूसरी ओर यदि हम आशावादी हैं और हमारे मन में कुछ पाने व जानने की तीव्र इच्छा है तथा हम सदैव भविष्य की ओर देखते हैं,तो हम इन सकारात्मक विचारों के अनुरूप ही प्रगति की ओर बढ़ते चले जाते हैं।
हमारे चारों ओर अनेक ऐसे उदाहरण देखने को मिल सकते हैं कि,हमारे ही बीच कुछ व्यक्ति सदैव उच्च सफलता पाते हैं। दूसरी ओर कुछ व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में असफल होते चले जाते हैं। दोनों प्रकार के व्यक्तियों के गुणों का यदि आकलन करें तो हम पाएँगे कि असफल व्यक्ति प्राय: निराशावादी तथा हीनभावना से ग्रसित होते हैं,ऐसे व्यक्ति संघर्ष से पूर्व ही हार स्वीकार कर लेते हैं। धीरे-धीरे उनमें यह प्रबल भावना बैठ जाती है कि,वे कभी भी जीत नहीं सकते हैं,वहीं सफल व्यक्ति प्राय: आशावादी व कर्मवीर होते हैं। वे जीत के लिए सदैव प्रयास करते हैं।
क्या आपने कभी सोचा है कि,मन के रूप में कितनी अद्भुत चीज़ हमारे पास है। कहते हैं ना ‘मन के हारे हार है,मन के जीते जीत।’ मन यदि सधा हुआ हो,तो आप जग जीत सकते हैं और यदि मन नियंत्रण में न हो,तो जीती हुई बाज़ी भी हार सकते हैं।
वस्तुतः हम मन को लेकर सुलझे कम, उलझे अधिक रहते हैं। इच्छाओं,कामनाओं,वासनाओं को मन की वृत्तियाँ जानकर उनके मायाजाल में आबद्ध रहते हैं और मन की अनंत शक्ति,अछूती,अनजानी व अप्रयुक्त ही रह जाती है।
वास्तव में,हमारा मन ही सारे भावों का उद्गम स्थल है। राग,द्वैष,क्रोध,चिंता,हर्ष, अमर्ष आदि सभी भाव यहीं उपजते हैं,विस्तार पाते हैं और शमित भी होते हैं। संस्कार और सोच के अनुसार मन में इनका स्थान और कालावधि तय होते हैं। जो भाव सकारात्मक हैं,वे प्रशंसित और जो नकारात्मक हैं,वे निन्दित होते हैं। जो सत् भावों को वरीयता दे,वो अच्छे मन वाला और जो दुर्भावों को पाले,वो कुटिल माना जाता है।
निष्कर्ष रूप में कहा जाए तो मन से ही व्यक्तित्व की दिशा तय होती है। जो भीतर है,वही बाहर झलकता है। आचरण,मन का प्रतिबिम्ब है और मन अन्तर्जगत का। हममें से अधिकांश मन द्वारा शासित हैं और यही हमारे दुःख का कारण है। हम जीवन की विविध अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों के आलोड़न-विलोड़न में स्वनिर्मित मनोभावों से संचालित होते हैं। सुख में सुखी और दुःख में महादुखी। बस,यहीं से सारी समस्या आरम्भ हो जाती है। सुख में तो सभी प्रसन्न होते हैं, लेकिन दुःख में भी जो समान भाव से आनंदित रहे,वो मन का राजा।
सच तो यह है कि मन पर जिसने शासन करना जान लिया,वो सदा के लिए सुख को उपलब्ध हो गया। भारतीय आद्य परम्परा में ऋषि-मुनि और संत जन इसीलिए सदैव प्रसन्न रहते थे क्योंकि वे मन को निरपेक्ष कर लेते थे और उसकी दिव्य शक्तियों का उपयोग कर बड़े-बड़े लोकहितकारी कार्यों को अंजाम देते थे।
वस्तुतः,दुनिया में जितने महान आविष्कार हुए, जितने सुन्दर निर्माण हुए,जितने उल्लेखनीय काम हुए,जितनी रचनात्मक कलाएं अस्तित्व में आईं,सब मन की दृढ़ संकल्प शक्ति का कमाल है। ज़रूरत मन की अपार क्षमताओं को पहचानने की है। उसकी सकारात्मक ऊर्जा को जानने की है। स्मरण रखिए,श्रेष्ठ परिणाम मन के मजबूत इरादों से ही जन्मते हैं। इसलिए जब भी प्रतिकूलताएं हावी होने का प्रयास करें,आप मन को ढाल बना लीजिए। यदि आपके विचार नकारात्मक राह पकड़ लें,तो मन की सकारात्मकता का चाबुक चला लीजिए। भाव संकुचित होने लगें,तो मन की विशाल और उदात्त भूमि पर उन्हें मुक्त छोड़ दीजिए।
शायर जमील मज़हरी कहते हैं-
‘जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़,
आख़िर ये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की।’

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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