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पाओ मुस्कान का अर्श

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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सिमट रहे हैं रिश्ते,
समय कर रहा प्रेम को धूल
रिश्तों में फासले,
हर बात में अब बस शूल।

समाज की चिंता,
आँधी बदलाव की उड़ा रही
संवेदनाओं की चादर,
छिन गया है सुकून का आनंद
बन गई जिन्दगी मानो चिता।

अब जादू है सम्बन्धों में तकनीक का,
कलह-दुःख-लालच बने जहर
रिश्तों में बनावटीपना,
सम्भालने की चुनौती जैसे कहर।

आधुनिकता की अंधी दौड़,
अनुभव-समझ हुए बेकार
घर-दुनिया-हम खुशनुमा नहीं,
बिना समझे आगे-जीतने की होड़।

स्व को भुलाया, संस्कृति भी भटकी,
कर लिया आदर्शों-उसूलों से समझौता
अपनों से मिलने का वक्त नहीं;दुनियाभर की फिक्र
अपनों से दूरियाँ और बेगानों का जिक्र।

रूखेपन के साए, हर और संघर्ष,
अपनी-पराई खुशी से खुश नहीं इंसान
अपने मन-घर में भी अकेला,
पर इससे होगा क्या भला ?
इसलिए, रिश्ते सम्भालो,
अपनों की खातिर वक्त निकालो।
रहो जरा मस्ती में खुश,
छोड़ो उदासी, पाओ मुस्कान का अर्श॥