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ये फलती क्यों है..

प्रिया सिंह
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)

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भागती-दौड़ती सी ये साँसें आज थमती क्यों हैं,
यहाँ दिसम्बर आकर एकदम से जमती क्यों हैl

ये लरज़िशी बदन की….बेखौफ़-सी एक मांग,
नज़दीकी में…चादर एकदम से कमती क्यों हैंl

मौसम-ए-गुल तो यहाँ घुल-मिल जाते हैं सबसे,
बस ये मौसम-ए-ठंडी एकदम से रमती क्यों हैl

हम…गुजारा कर लेते हैं गर्म चाय पी कर यूँ ही,
चाय से धड़कनें मेरी एकदम से जलती क्यों हैंl

सर्द रहती है मेरे बदन में यकीनन उस वक्त भी,
शाम खामखां आँखें एकदम से मलती क्यों हैंl

सुकून से…दिल मेरा खोया रहता है खयालों में,
उदासी ये फिर मुझे एकदम से खलती क्यों हैl

याद में अक्सर रहता है गुमसुम दिल यहाँ मेरा,
जुबान तेरे नाम पर,एकदम से टलती क्यों हैंl

जब चलन नहीं मालूम तुझे मोहब्बत का यहाँ,
तब अनजानी रहों पर एकदम से चलती क्यों हैl

सुनों मोहब्बत के बगैर जिन्दगी क्या जिन्दगी है,
कुछ नहीं तो फिर एकदम से ये फलती क्यों है…ll

परिचय-प्रिया सिंह का बसेरा उत्तरप्रदेश के लखनऊ में है। २ जून १९९६ को लखनऊ में जन्मी एवं वर्तमान-स्थाई पता भी यही है। हिंदी भाषा जानने वाली प्रिया सिंह ने लखनऊ से ही कला में स्नातक किया है। इनका कार्यक्षेत्र-नौकरी(निजी)है। लेखन विधा-ग़ज़ल तथ कविता है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जन-जन को जागरूक करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा को मानने वाली प्रिया सिंह देश के लिए हिंदी भाषा को आवश्यक मानती हैं।

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