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भाषाएं, भारतीय कला और संस्कृति की संवर्धक

भारतीय भाषा सम्मेलन…

इंदौर (मप्र)।

भारतीय ज्ञान परम्परा में भाषा का अपना महत्व है। हमारी भारतीय संस्कृति की प्रवाहिका भाषा ही है। भारतीय भाषाओं में वह शक्ति है, जो हमें विकास का मार्ग दिखाती आई हैं। यही कारण है कि, नई ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ में भारतीय भाषाओं को महत्व दिया गया है। भाषाएं, भारतीय कला और संस्कृति की संवर्धक है।
यह विचार पाणिनी वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विजय कुमार सीजी ने मुख्य अतिथि के रूप में गुरूवार को देवी अहिल्या विवि के तक्षशिला परिसर स्थित श्री अटल बिहारी वाजपेयी सभागार में ‘भारतीय भाषा सम्मेलन’ में व्यक्त किए। यह सम्मेलन विवि की तुलनात्मक भाषा एवं संस्कृति अध्ययनशाला, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास (दिल्ली) एवं भारतीय भाषा समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया। अध्ययनशाला विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम समन्वयक प्रो. राजेंद्र सिंह ने सम्मेलन के केंद्रीय विषय ‘विकसित भारत के निर्माण में भारतीय भाषाओं की भूमिका’ और आयोजन पर प्रकाश डाला।
विशेष अतिथि न्यास की श्रीमती शोभाताई पैठनकर ने कहा कि, यदि देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा। हमारी भाषा हमारी पहचान है, जिस पर हम सभी को गौरव होना चाहिए।
देअविवि की कुलपति डॉ. रेणु जैन ने कहा कि, विदेशी भाषाएं आपको आंदोलित नहीं कर सकती है। यह शक्ति केवल भारतीय भाषाओं में ही है, जो व्यक्ति को अंदर से जगा सकती है। कार्यपरिषद सदस्य अनंत पवार ने कहा कि, हमें हमारी भाषा का सम्मान करना चाहिए और यह शुरूआत घर से ही करना होगी। कार्य-परिषद सदस्य ओम शर्मा ने कहा कि, माँ, मातृभूमि और भाषा का सम्मान करना चाहिए। प्रभारी कुलसचिव प्रज्ववल खरे ने कहा कि, हमारी उन्नति केवल अपनी भाषा में ही संभव है और हमें यह समझना होगा। इस अवसर पर परिषद सदस्य श्रीमती मोनिका गौड़, श्रीमती वैशाली वायकर व डॉ. राजेश शर्मा विशेष रूप से उपस्थित रहे।
प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत पूर्व कुलपति डॉ. आशुतोष मिश्रा, विभागाध्यक्ष प्रो. सिंह, डॉ. रूपाली सारये और दीपक यादव ने किया।
संचालन प्रो. दिनेश दवे ने किया। आभार अवधेश शर्मा ने माना।
◾अंग्रेजी को नौकरानी बनकर ही रहना होगा
प्रथम तकनीकी सत्र में विषय विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी। इसमें मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि, भारतीय भाषाओं का अपना दर्शनशास्त्र है, मनोविज्ञान है और समाज शास्त्र भी। विदेशों की भाषाओं में यह नजर नहीं आता है। भारतीय भाषाएं आत्मा की भाषाएं हैं, जिसे हम बोलते नहीं, बल्कि जीते है। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कितने लोग भाषा बोलते हैं, बल्कि महत्व इस बात का है कि कौन भाषा को बोल रहा है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि, संस्कृत हमारी मातारानी है, हिंदी बहुरानी। अंग्रेजी को भारत में रहना है तो नौकरानी बनकर ही रहना होगा। भाषा विशेषज्ञ और अधिष्ठाता (साहित्य विद्यापीठ) प्रो. अखिलेश कुमार दुबे ने कहा कि, यदि कोई भाषा नष्ट होती है तो पूरी संस्कृति नष्ट हो जाती है। यदि हमें भारत को विकसित देश बनाना है तो वह उधारी की भाषा से नहीं बन सकता है। चौधरी चरण सिंह विवि के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. नवीनचंद्र लोहनी ने कहा कि, बहुभाषिक शिक्षा, भारतीय समावेशी शिक्षा के रूप में उभरेगी। हमें हमारी भाषाओं को समृद्ध करना होगा।
अतिथियों का स्वागत साहित्यकार हरेराम वाजपेयी ने किया। सत्र का संचालन प्रो. रेखा आचार्य ने किया। डॉ. मुकेश भार्गव ने आभार माना।

भाषाई बंधनों को ढीला कर रही तकनीक
द्वितीय तकनीकी सत्र में
विषय विशेषज्ञ डॉ. गीता नायक ने ‘भारतीय भाषा में शब्दावली निर्माण’ विषय पर कहा कि, हमारी बोलियाँ मर रही है, जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। विषय विशेषज्ञ डॉ. संगीता मेहता ने कहा कि, भाषाओं को प्रकृति के साथ जोड़ना चाहिए। भाषा विशेषज्ञ डॉ. पुष्पेंद्र दुबे ने ‘भारतीय भाषाएं और प्रौद्योगिकी’ विषय पर कहा कि, तकनीक, भाषाई बंधनों को ढीला कर रही है। तकनीक के युग में भाषा को बचाने की जरूरत है। श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के प्रचार मंत्री हरेराम वाजपेयी ने ‘भारतीय भाषा में विषय शिक्षक के लिए विश्वविद्यालय प्राध्यापक की तैयारी’ विषय पर कहा कि, जब भाषाएं मिलेगी, भाषायी सामंजस्य जुड़ेगा, तभी भारत को एकता के सू़त्र में बांधा जा सकेंगा। इस सत्र में अतिथियों का स्वागत डॉ. वंदना अग्निहोत्री ने किया।