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पाशविकता है कलुषता

छगन लाल गर्ग “विज्ञ”
आबू रोड (राजस्थान)
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कलुषता का शाब्दिक अर्थ है अपवित्रताl इस अपवित्रता या कलुषता का संबंध बाह्य व्यक्तित्व की शारीरिक बनावट या कुरूपता की देहावस्था से नहीं है,इसका संबंध बुरे-भले कृत्यों की आवरण कथा में घनीभूत और रहस्यमयी हो चुका हैl जीवन के अनेक क्षेत्रों में कलुषता परिमार्जित होकर श्रेष्ठता का दर्जा हासिल कर चुकी हैl इस गुंफन की अतिशय जकड़न से सत्यान्वेषण के धागे बुरी तरह उलझ चुके हैं,परिणामस्वरूप कलुषता के पैमाने विनिष्ट कर नवगढ़ंत कलुषता का साम्राज्य स्थापित किया जा चुका हैl
नव कलुषता की पृष्ठभूमि हमारे अतीत की उपलब्धियों का दर्शन शास्त्र है, जिसमें वर्ण व्यवस्था का ताना-बाना सुव्यवस्थित समाज संरचना के लिए रखा गया थाl उसका मूल आधार कर्म की शुद्धता पर निर्भर करता था ,वर्ण व्यवस्था के चारों वर्ण ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र कर्म पर आधारित थेl जन्म पर आधारित व्यक्ति-व्यक्ति के बीच भेदभाव या कलुषता का निर्धारण नहीं होता थाl अपितु व्यक्ति के आचरण और कर्म की पृष्ठभूमि पर कलुषता का निर्धारण हुआ करता थाl उस समय ब्राह्मण को उसकी जाति या गोत्र में खोजने की आवश्यकता नहीं होती थी,जिसमें ब्रह्म के खोज की ललक थी,जिसमें पावनता का निर्मल अंश रहता था,जो स्वयं के प्रति सच्चा और साहसी था वही ब्राह्मण थाl इस संदर्भ में एक कथा बहुत सुन्दर है-सत्यकाम जाबाल एक वैश्या का पुत्र थाl जब वह विद्या ग्रहण करने काबिल हुआ,तो उसने अपनी माँ से विद्या अध्ययन के लिए गुरु के आश्रम में जाने की जिद पकड़ लीl माँ ने अपनी विवशता को छिपाने की तनिक भी कोशिश नहीं कीl उस माँ के साहस और सत्य की प्रशंसा अवश्य होनी चाहिए,और उसकी कलुषता और पावनता का सत्यान्वेषण पाठकों को सौंपना उचित होगाl उसने अपने पुत्र से कहा-” मेरे प्यारे पुत्र! तुम सुनो,पीछे चाहे मुझसे घृणा कर लेना…मेरे से संपर्क त्याग कर लेना…पर सुनो,मेरा अतीत बहुत कलुषता भरा रहा है…जब मैं जवान थी तब अनेकानेक भद्र पुरुषों के साथ मैं रमण किया करती थी, उन्हें प्रसन्न करती रही हूँ…सच तो यह है पुत्र की मैं एक वैश्या हूँ…मुझे नहीं पता…तेरा पिता कौन है अनगिनत पुरुषों की श्रंखला बीच कैसे अनुमान लगा सकती हूँ कौन है तेरा पिता…! मुश्किल इस बात की है कि गुरुकुल में तेरे पिता का नाम पूछा जाएगा…क्या तेरे में इतनी हिम्मत है कि कह सके कि मेरी माँ को मेरे पिता का नाम ध्यान में नहीं है…क्या तू यह कह सकेगा कि,मेरी माँ का नाम जाबाली है…क्या तुम्हारे भीतर इस सत्य को प्रकट करने का साहस है ? यदि है तो तुम अवश्य गुरुकुल में शिक्षा के लिए जा सकते हो!” इसलिए कहा जाता है कि,सत्य बड़ा कड़वा होता है,सत्यकाम के भीतर इस रहस्योद्घाटन से क्या प्रतिक्रिया हुई होगी इसका अनुमान लगाना कठिन है,पर जो सत्य का अनुगामी है जो ब्रह्म की खोज में है जिसमें कर्मों की परिमल परिलब्धियों का भंडार है,वह अवश्य ही सत्यान्वेषण की अनुभूति से तादात्म्य स्थापित कर सकने की सामर्थ्य रखता है…कहते हैं सत्यकाम गुरुकुल पहुँचा थाl उसने अपने गुरु से कहा…-आचार्य मैं अपने पिता का नाम नहीं रखता हूँl मेरी माँ का नाम जाबाली है,वह सार्वजनिक वैश्या हैl मैं वैश्या पुत्र सत्यकाम जाबाल हूँ!” गुरु हरिद्रुमत निश्चित ही परम ज्ञानी होंगेl बालक सत्यकाम के इस सरल सत्य से प्रभावित उस गुरु ने बालक को हृदय से लगा दिया और कहा-“मेरे प्रिय तू निश्चय ही ब्राह्मण है…बाह्मण के अतिरिक्त और किसी में कलुषित सत्य को कहने का साहस नहीं हो सकता…क्योंकि सत्यान्वेषण की प्रक्रिया में झूठ और असत्य का अस्तित्व धराशायी हो जाता हैl यही श्रेष्ठ जनों की निशानी हैl
कलुषता जीवन का घृणित,क्रूरता से परिपूर्ण,पाशविकता का नाम है जिसमें पशुता से युक्त दंभ का दैत्य जीवन की मंगल व सौन्दर्य भावभूमि का विनाश होता रहता है…l

परिचय–छगनलाल गर्ग का साहित्यिक उपनाम `विज्ञ` हैl १३ अप्रैल १९५४ को गाँव-जीरावल(सिरोही,राजस्थान)में जन्मे होकर वर्तमान में राजस्थान स्थित आबू रोड पर रहते हैं, जबकि स्थाई पता-गाँव-जीरावल हैl आपको भाषा ज्ञान-हिन्दी, अंग्रेजी और गुजराती का हैl स्नातकोत्तर तक शिक्षित श्री गर्ग का कार्यक्षेत्र-प्रधानाचार्य(राजस्थान) का रहा हैl सामाजिक गतिविधि में आप दलित बालिका शिक्षा के लिए कार्यरत हैंl इनकी लेखन विधा-छंद,कहानी,कविता,लेख हैl काव्य संग्रह-मदांध मन,रंजन रस,क्षणबोध और तथाता (छंद काव्य संग्रह) सहित लगभग २० प्रकाशित हैं,तो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैंl बात करें प्राप्त सम्मान -पुरस्कार की तो-काव्य रत्न सम्मान,हिंदी रत्न सम्मान,विद्या वाचस्पति(मानद उपाधि) व राष्ट्रीय स्तर की कई साहित्य संस्थानों से १०० से अधिक सम्मान मिले हैंl ब्लॉग पर भी आप लिखते हैंl विशेष उपलब्धि-साहित्यिक सम्मान ही हैंl इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का प्रसार-प्रचार करना,नई पीढ़ी में शास्त्रीय छंदों में अभिरुचि उत्पन्न करना,आलेखों व कथाओं के माध्यम से सामयिक परिस्थितियों को अभिव्यक्ति देने का प्रयास करना हैl पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद व कवि जयशंकर प्रसाद हैंl छगनलाल गर्ग `विज्ञ` के लिए प्रेरणा पुंज- प्राध्यापक मथुरेशनंदन कुलश्रेष्ठ(सिरोही,राजस्थान)हैl

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