एस.के.कपूर ‘श्री हंस’
बरेली(उत्तरप्रदेश)
*********************************
‘पिता का प्रेम, पसीना और हम’ स्पर्धा विशेष…..
माँ स्नेह का स्पर्श तो पिता धूप में छाया है,
माँ घर करती देखभाल तो पिता लाता माया है।
माँ-बाप के आजीवन ऋणी हैं हम सब ही,
इनसे ही प्राप्त हुई हम,सबको काया है॥
माँ ममता की मूरत तो,जैसे पिता साया है,
माँ से सबने ही बहुत,प्यार-दुलार पाया है॥
जीवन में आती है,जब भी कठिनाई,
पिता ने साथी बन कर,हाथ बढ़ाया है॥
माँ-बाप ऊँगली पकड़,चलना सिखाया है,
बड़ा करके लिखना,पढ़ना बताया है।
पिता से ही जाना है,कैसे बनना मजबूत,
बाजार से खिलौने तो पिता ही लाया है॥
माँ खुला अहाता तो पिता जैसे छत है,
जमाने से बचने की,हर सीख का खत है।
हम हैं संसार में बस,माँ-बाप की बदौलत,
माता-पिता से मिलती,संस्कारों की लत है॥
माता-पिता ही समझाते,अपने-पराए का अंतर,
हमें बड़ा करने को करते,वह दोनों ही हर जंतर।
पिता का हाथ लगता यूँ,जैसे अंधेरे में उजाला,
माता-पिता की सेवा ही,जैसे हर पूजन मंतर है॥