संदीप धीमान
चमोली (उत्तराखंड)
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ध्वनि प्रति-उत्तर करती है,
मौन कहां से पाओगे,
प्रश्न कूदेंगे जहन तुम्हारे
मौन न तुम रह पाओगे।
हो वियान जंगल भले ही
या रात अंधेरी हो घनेरी,
भिन्न-भिन्न ध्वनि जग में
भिन्न-भिन्न तुम पाओगे।
ध्वनि रोधक कक्ष में भी
शांत न तुम रह पाओगे,
ह्रदय धड़कन दस्तक देंगी
क्या वंचित तुम रह पाओगे ?
तपना होगा,जलना होगा
त्याग इच्छा करना होगा,
मौन,गौंण गढ़ना होगा
ईश्वर खुद का बनना होगा।
बुद्ध बनने से पहले जग में,
बुद्धू घोषित करना होगा।
देह इन्द्रियों से पार कहीं
क्या मौन तुम रह पाओगे ?