कुल पृष्ठ दर्शन : 261

हाफिज सईद पर नौटंकी

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
**************************************************

पाकिस्तान की जमात-उद-दावा के सरगना हाफिज सईद को १० साल की जेल की सजा हो गई है। वह पहले से ही लाहौर में ११ साल की जेल काट रहा है। अब ये दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी। ये सजाएं पाकिस्तान की ही अदालतों ने दी हैं। क्यों दी हैं ?,क्योंकि पेरिस के अंतरराष्ट्रीय वित्तीय कोश संगठन ने पाकिस्तान का हुक्का-पानी बंद कर रखा है। उसने पाकिस्तान का नाम अपनी भूरी सूची में डाल रखा है,क्योंकि उसने सईद जैसे आतंकवादियों को अभी तक छुट्टा छोड़ रखा था। हाफिज सईद की गिरफ्तारी पर अमेरिका ने लगभग ७५ करोड़ रु. का इनाम २००८ में घोषित किया था,लेकिन वह १०-११ साल तक पाकिस्तान में खुला घूमता रहा। किसी सरकार की हिम्मत नहीं हुई कि,वह उसे गिरफ्तार करती। दुनिया के मालदार मुल्कों के आगे पाकिस्तान के नेता भीख का कटोरा फैलाते रहे,लेकिन मुफ्त के ७५ करोड़ रु. लेना उन्होंने ठीक नहीं समझा। क्यों नहीं समझा ?,इसीलिए कि हाफिज सईद तो उन्हीं का खड़ा किया गया पुतला था। अमेरिका ने जो पुरस्कार रखा था,वह भी किसी ढोंग से कम नहीं था। यदि वह उसामा बिन लादेन को उसके गुप्त ठिकाने में घुसकर मार सकता था,तो सईद को पकड़ना उसके लिए कौन-सी बड़ी बात थी ?,लेकिन सईद तो भारत में आतंक फैला रहा था। अमेरिका को उससे कोई सीधा खतरा नहीं था। अब जबकि,खुद पाकिस्तान की सरकार का हुक्का-पानी खतरे में पड़ा तो देखिए,उसने आनन-फानन में सईद को अंदर कर दिया। सईद की यह गिरफ्तारी भी दुनिया को एक ढोंग ही मालूम पड़ रही है। सईद और उसके साथी जेल में जरुर रहेंगे,लेकिन इमरान-सरकार के दामाद की तरह रहेंगे। अब उनके खाने-पीने,दवा-दारु और आने-जाने का खर्चा भी पाकिस्तान सरकार ही उठाएगी। उन्हें राजनीतिक कैदियों की सारी सुविधाएं मिलेंगी। जेल-जीवन के आनंद का क्या कहना ? भारत में आतंकवाद फैलाकर इन तथाकथित जिहादियों ने पाकिस्तानी फौज और सरकार की जो सेवा की है,उसका पारितोषिक अब उन्हें जेल में मिलेगा। ज्यों ही पाकिस्तान भूरी से सफेद सूची में आया कि ये आतंकवादी रिहा हो जाएंगे। पाकिस्तानी आतंकवादियों के कारण पाकिस्तान सारी दुनिया में ‘नापाकिस्तान’ बन गया है और भारत और अफगानिस्तान से ज्यादा निर्दोष मुसलमान पाकिस्तान में मारे गए हैं। पाकिस्तान यदि जिन्ना के सपनों को साकार करना चाहता है और शांति-सम्पन्न राष्ट्र बनना चाहता है तो उसे इन गिरफ्तारियों की नौटंकी से आगे निकलकर आतंकवाद की नीति का ही परित्याग करना चाहिए।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

Leave a Reply