ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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निकला हो ले डुबकी, लगे कि पावन गंग,
प्रेम रंग सच्चा वही, कर दे हृदय मलंग।
प्रेम किया दिन रश्मि से, अँधियारे से रैन,
ज्यों ही विलग हुआ कभी, बस प्रलय से जंग।
धरती ने ध्रु से किया, वसुंधरा से चाँद,
मुख मोड़ा ज्यों प्रेम से, सृष्टि मचे हुड़दंग।
प्रेम रचा कर नीर से, साथ छोड़ता मेघ
नील शून्य में नष्ट हो, रह जाता बदरंग।
प्रेम अग्नि का ताप से, स्वर का सुर से प्रेम,
इन अनल अमर प्रेम को, कौन कर सका भंग।
एककार हुए प्रेम से, सुगंधी और फूल,
खुश्बू रहती साथ तक, बसती फूल उमंग।
क्षण भर दोनों रह न सके, एक-दूजे बिन साथ,
किसकी ताकत रोक ले, सागर और तरंग।
प्रेम बदन का प्राण से, साँसों का सम्बंध,
प्राण गए पल भर न जिये, मर जाता है संग।
प्रेम रंग ही है सदा, स्थायी और सार,
प्रेम बिना मानव हृदय, पागल हुआ मतंग॥
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।