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फितरत

डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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श्रद्धा हत्याकांड….

सुन, श्रद्धा जैसी हर बेटी सुन,
मनुज की फितरत को पहचान
फूंक-फूंककर कदम बढ़ाना,
रखना मान-मर्यादा का ध्यान।

माँ-बाप तेरे शुभचिंतक हैं,
उनके तजुर्बे का रखना मान
स्वतंत्रता में उद्दंडता ना दिखाना,
श्रद्धा जैसा, ना हो तेरा अंजाम।

क्षणिक सुख था, बड़ा सुहाना,
माँ-बाप की एक ना मानी
स्वतंत्रता में उद्दंडता दिखलाई,
कर बैठी थी, श्रद्धा मनमानी।

इन्सान रुप में निकला भेड़िया,
बहुरुपिए की थी चाल निराली
समझ सकी ना फितरत उसकी,
थी अन्धी श्रध्दा, वो रखने वाली।

वासना में प्यार इन्हें दिखता,
श्रद्धा, इतनी अन्धी हो जाती।
जरा ना भविष्य का दिखता,
क्षणिक इन्हें खुशी यूँ भरमाती।

प्यार कम, श्रद्धा वासना में भूली,
आफताब की बाँहों में झूली
अपनों की भी, वह सगी ना भयी,
नादान निकली, वह ठगी गई।

एक हाथ से ना बजती ताली,
आफताब को क्यों दें गाली
स्वतंत्रता, अधिकार की आड़ में,
बन बैठी थी, वह मतवाली।

माँ-बाप की नसीहतें और,
अच्छी बातें, उसे बुरी लगी
प्यार-वासना में सनी हुई,
मनचाही बातें उसे भली लगी।

माँ-बाप जो प्यार से पालते,
इनके सारे नखरे-नाज उठाते
अपने पैरों पर जब खड़े हुए,
माँ-बाप को अज्ञानी बतलाते।

मनुज, मनुज को धोखा है देता,
अपना उल्लू सीधा है करता।
सरल नहीं, अन्तर्मन समझना,
छल-प्रपंच, छलिए को परखना।

तोड़ना ना, माँ-बाप का सपना,
उनके बलिदानों को ना भूलना।
पहनकर जामा आधुनिकीकरण,
श्रद्धा, अन्धी मत हो जाना॥

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