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फिर वही शाम

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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न जाने क्यों बार-बार आ जाती है,
हमसे मिलने ‘फिर वही शाम’
क्यों बीते पल को याद दिलाती है_
रोज-रोज आकर वही शाम।

सहने की घड़ी अब बन्द हो गई है,
तुम क्यों उत्तेजित करते हो मन
विरह की आग में तो पहले से ही,
जला दिया है हमारा कोमल तन।

उम्रभर की पिया से जुदाई वाली,
हर दिन की निर्दयी शाम न होती
सखी ‘देवन्ती’ तुम्हारे नयनों में,
दर्दभरे आँसू का नाम न होती।

सुख-चैन लूट कर वह चला गया,
आती है जो, हर रोज वही शाम।
जनवरी की दुपहरी ढलते आती है,
लेकर वही शाम दर्द का पैगाम।

चली जा कहीं दूर, मत आना शाम,
छोड़ो राह, आने दो शुभ रात को।
मधुर-मधुर ख्वाबों में करूॅ॑गी पूर्ण,
मैं अधूरी मिलन की बात को॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है

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