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बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने का मोदी संकल्प

ललित गर्ग
दिल्ली

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी दूसरी पारी के सौ दिन पूरे होने के बाद अब प्रकृति-पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण-मुक्ति के लिये सक्रिय हैं। कुशल राजनीतिज्ञ की तरह वे जुझारू किसान एवं पर्यावरणविद की भांति धरती पर मंडरा रहे खतरों के लिये जागरूक हुए हैं। बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने एवं पर्यावरण की रक्षा को लेकर प्रधानमंत्री का संकल्प एक शुभ संकेत है,नये भारत के अभ्युदय का प्रतीक है। उम्मीद करें कि सरकार की नीतियों में जल,जंगल,जमीन एवं जीवन की उन्नत संभावनाएं और भी प्रखर रूप में झलकेगी। प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश में घोषणा की कि भारत २०३० तक २.१ करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने के अपने लक्ष्य को बढ़ाकर २.६ करोड़ हेक्टेयर करेगा,इससे पर्यावरण की रक्षा तो होगी ही,उपजाऊ भूमि का भी विस्तार होगा। देखने में आ रहा है कि कथित आधुनिक समाज एवं विकास का प्रारूप अपने को कालजयी मानने की गफलत पाले हुए है और उसकी भारी कीमत भी चुका रहा है। लगातार पांव पसार रही तबाही इंसानी गफलत को उजागर तो करती रही है,लेकिन समाधान का कोई रास्ता प्रस्तुत नहीं कर पाई। ऐसे में अगर मोदी सरकार ने कुछ ठानी है तो उसका स्वागत होना ही चाहिए। क्या कुछ छोटे,खुद कर सकने योग्य कदम नहीं उठाये जा सकते ?
उपजाऊ जमीनों का मरुस्थल में बदलना निश्चित ही पूरी दुनिया के लिए भारी चिंता का विषय है। इसे अब एक धीमी प्राकृतिक आपदा के रूप में देखा जाने लगा है। यह देखा गया है कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रकृति का दोहन करता चला आ रहा है,भूमि को बंजर करता जा रहा है। अगर प्रकृति के साथ इस प्रकार से खिलवाड़ होता रहा तो वह दिन दूर नहीं होगा,जब हमें शुद्ध पानी,शुद्ध हवा,उपजाऊ भूमि,शुद्ध वातावरण एवं शुद्ध वनस्पतियाँ नहीं मिल सकेंगी। इन सबके बिना हमारा जीवन जीना मुश्किल हो जाएगा। आज आवश्यकता है कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की ओर विशेष ध्यान दिया जाए,जिसमें मुख्यतः धूप,खनिज,वनस्पति,हवा, पानी,वातावरण,भूमि तथा जानवर आदि शामिल हैं। इन संसाधनों का अंधाधुंध दुरुपयोग किया जा रहा है,जिसके कारण ये संसाधन धीरे-धीरे समाप्त होने की कगार पर हैं। इस जटिल होती समस्या की ओर प्रधानमंत्री का चिंतित होना एवं कुछ सार्थक कदम उठाने के लिये पहल करना जीवन की नयी संभावनाओं को उजागर करता है।
मोदी ने जलवायु परिवर्तन,जैव विविधता और भूमि क्षरण जैसे मुद्दों पर सरकार की जागरूकता एवं सहयोग का भरोसा दिलाया और कहा कि सरकार ने ठान लिया है कि भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक के लिए कोई जगह नहीं होगी। प्रधानमंत्री पूर्व में ही देश को स्वच्छ भारत मिशन के तहत प्लास्टिक कचरे से मुक्त करने की अपील करते हुए एक महाभियान का शुभारंभ गांधी जयंती के अवसर पर करने का संकल्प व्यक्त कर चुके हैं। उन्होंने लोगों से अपील की कि दो अक्टूबर के दिन वे सारा सिंगल यूज प्लास्टिक इकट्ठा करें एवं नगर निगम में जमा कराएं और देश को सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त करने में सहयोग दें।
उन्होंने जानकारी दी कि २०१५ और २०१७ के बीच भारत में पेड़ों और जंगल के दायरे में ८ लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन संबंधी अंतर-सरकारी समिति (आईपीसीसी) ने पिछले महीने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि विश्व में २३ फीसदी कृषियोग्य भूमि का क्षरण हो चुका है,जबकि भारत में यह हाल ३० फीसदी भूमि का हुआ है। इस आपदा से निपटने के लिए कार्बन उत्सर्जन को रोकना ही काफी नहीं है। इसके लिए खेती में बदलाव करने होंगे,शाकाहार को बढ़ावा देना होगा और जमीन का इस्तेमाल सोच-समझकर करना होगा।
जल,जंगल और जमीन इन तीन तत्वों से प्रकृति का निर्माण होता है। यदि यह तत्व न हों तो प्रकृति इन तीन तत्वों के बिना अधूरी है। विश्व में ज्यादातर समृद्ध देश वही माने जाते हैं,जहां इन तीनों तत्वों का बाहुल्य है।
शहरों का दायरा बढ़ने के साथ सड़क,पुल,कारखानों और रेलवे लाइनों के निर्माण से खेतिहर जमीन का खात्मा और बची जमीन की उर्वरा शक्ति कम होना भू-क्षरण का दूसरा रूप है,जिस पर कोई बात ही नहीं होती,लेकिन प्रधानमंत्री की पहल से इस पर बात ही नहीं हो रही, बल्कि इस समस्या से निजात पाने की दिशा में सार्थक कदम भी उठाये जा रहे हैं।
प्रतिवर्ष धरती का तापमान बढ़ रहा है। आबादी बढ़ रही है,जमीन छोटी पड़ रही है। हर चीज की उपलब्धता कम हो रही है। आक्सीजन की कमी हो रही है। साथ ही साथ हमारा सुविधावादी नजरिया एवं जीवनशैली पर्यावरण एवं प्रकृति के लिये एक गंभीर खतरा बन कर प्रस्तुत हो रहा है। सरकार अगर सचमुच जमीन को उपजाऊ बनाना चाहती है तो उसे निर्माण क्षेत्र को नियंत्रित करना होगा,लेकिन इस दिशा में एक कदम भी आगे बढ़ाने के लिए हमें विकास प्रक्रिया पर ठहरकर सोचने के लिए तैयार होना होगा। बात तभी बनेगी,जब सरकार के साथ-साथ समाज भी अपना नजरिया बदले। इन स्थितियों मे मोदी का आह्वान घोर अंधेरों के बीच उजालों के अवतरण का द्योतक है।

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