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बचपन क्या था

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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याद आ रहे हैं हमें,
वो बचपन के दिन।
जिसमें न कोई चिंता,
और न ही कोई गम।
जब जैसा जहां मिला,
खा-पी हो गए मस्त।
न कोई जाति का झंझट,
न कोई ऊंच-नीच का भेद।
सबसे मिलकर रहते थे,
जैसे अपनों के बीच।
जैसे-२ बड़े होते गये,
वो सब हमें सिखा दिया।
बचपन में अनभिज्ञ थे जिससे,
स्वार्थ के लिए जहर पिला दिया।
और मानो हमें बचपन का,
सारा मतलब ही भुला दिया।
तभी तो लोग कहते हैं,
लौटकर बचपन आ नहीं सकता।
और बचपन की यादों को,
भुलाया जा नहीं सकता॥

परिचय-संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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