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सुनहरे भविष्य के सपने

इंदु भूषण बाली ‘परवाज़ मनावरी’
ज्यौड़ियां(जम्मू कश्मीर)

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विश्व बाल दिवस स्पर्धा विशेष………..

कालू की आँखों से आँसू बह रहे थे। वह सामने पड़े समाचार-पत्र के मुख्य पृष्ठ पर छपे समाचार को घूर रहा था,जिस पर विश्व बाल दिवस पर बच्चों के सुनहरे भविष्य का उल्लेख किया था। उसे देख अपने बाल्यकाल के गर्भ में खो गया। उसे याद आया,जब वह आठ वर्ष की आयु में बीमार माँ के लिए खाना बना रहा था तो कैसे उसके हाथ जल गए थे। उसे याद आया,जब उसकी दूसरी कक्षा के मित्र सहपाठी ने एक रूपया चुरा कर दूसरे सहपाठियों की तलाशी में सहयोग किया था और किसी से रूपया ना मिलने पर अपनी तलाशी से कतराया था,जबकि एक रूपया उसी की पुस्तक से मिला था। उसे याद आया,जब भारत-पाक युद्ध में अपने घरों से विस्थापित होते हुए उसके जूते नदी में बह गए थे और उसे नंगे पांव ही कई किलोमीटर चलना पड़ा था।
उसकी आँखों में उस सम्पादक का चेहरा भी घूम गया,जिसने उसकी बाल रचनाओं को पढ़ने के स्थान पर बुदबु-बुदबु कहकर उसकी रचनाओं को दूर फेंक दिया था। उसे वह चेहरा भी दिखाई दिया,जिसने उसे सम्पादक से परे ले जाकर आँसू पोंछे थे। कालू सोच रहा था कि ५० वर्ष बीतने के बाद भी बच्चों का वही पुराना हाल है। चूंकि,आज भी बच्चे चाय की दुकानों एवं ढाबों पर काम कर रहे हैं। कुछ बदला नहीं है। हाँ,यदि कुछ बदला है तो वह यह है कि राष्ट्रीय बाल दिवस या अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस के नाम पर चर्चा करने वाले बच्चों के सुनहरे भविष्य के सपनों को दर्शाते हुए पांच सितारा होटलों में बेठ कर अपने-सपने साकार कर रहे हैं,जिनके समाचार प्रमुख समाचार-पत्रों में प्रमुखता से छपते हैं। कालू की तंद्रा भंग हो गई। वह सोचने लगा कि कब बच्चों का भविष्य सुधरेगा और वास्तव में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस के उपलक्ष्यों पर बनाए गए नियमों-अधिनियमों के अनुसार बच्चों का जीवन व्यतीत होगा और कब उनके सुनहरे भविष्य के दर्शाऐ सपने पूरे होंगे ? कालू के मोतियों जैसे दो आँसू ठीक उसी समाचार पर टपक पड़े थे,और वह अपनी झुग्गी की ओर चल पड़ा।

परिचय-इंदु भूषण बाली का साहित्यिक उपनाम `परवाज़ मनावरी`हैl इनकी जन्म तारीख २० सितम्बर १९६२ एवं जन्म स्थान-मनावर(वर्तमान पाकिस्तान में)हैl वर्तमान और स्थाई निवास तहसील ज्यौड़ियां,जिला-जम्मू(जम्मू कश्मीर)हैl राज्य जम्मू-कश्मीर के श्री बाली की शिक्षा-पी.यू.सी. और शिरोमणि हैl कार्यक्षेत्र में विभिन्न चुनौतियों से लड़ना व आलोचना है,हालाँकि एसएसबी विभाग से सेवानिवृत्त हैंl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप पत्रकार,समाजसेवक, लेखक एवं भारत के राष्ट्रपति पद के पूर्व प्रत्याशी रहे हैंl आपकी लेखन विधा-लघुकथा,ग़ज़ल,लेख,व्यंग्य और आलोचना इत्यादि हैl प्रकाशन में आपके खाते में ७ पुस्तकें(व्हेयर इज कांस्टिट्यूशन ? लॉ एन्ड जस्टिस ?(अंग्रेजी),कड़वे सच,मुझे न्याय दो(हिंदी) तथा डोगरी में फिट्’टे मुँह तुंदा आदि)हैंl कई अख़बारों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैंl लेखन के लिए कुछ सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैंl अपने जीवन में विशेष उपलब्धि-अनंत मानने वाले परवाज़ मनावरी की लेखनी का उद्देश्य-भ्रष्टाचार से मुक्ति हैl प्रेरणा पुंज-राष्ट्रभक्ति है तो विशेषज्ञता-संविधानिक संघर्ष एवं राष्ट्रप्रेम में जीवन समर्पित है।

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