कुल पृष्ठ दर्शन : 194

You are currently viewing बच्चों हेतु स्मार्टफोन कितना जरूरी ?

बच्चों हेतु स्मार्टफोन कितना जरूरी ?

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
*****************************************************

सरोकार…

कभी-कभी यह विचार आता है कि, आज से ५० साल पहले हमारे जमाने में टी.वी, मोबाइल या इस तरह के सामाजिक सन्देश (सोशल मीडिया) का चलन होता तो, क्या हम इतने पढ़ लिखकर जो आज बने हैं, वह बन पाते ! हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। जैसे उस समय इतनी अधिक आर्थिक सम्पन्नता नहीं थी और दूसरा पढ़ने-लिखने के लिए समय देना पड़ता था। आर्थिक तंगी के कारण फीस, पुस्तकें लेना-देना कठिन था तो जो बहुमूल्य समय होता था उससे गृह कार्य और अन्य भी करना पड़ते थे। ऐसा नहीं है कि, आज बच्चे नहीं पढ़ रहे, पर व्यवहारिक दृष्टि से देखें तो हमारा कितना बहुमूल्य समय व्यर्थ जाता है।
आज मोबाइल एक व्यसन बन चुका है। हम इससे बच नहीं पा रहे हैं। आर्थिक स्थिति अच्छी होने से हम उन्हें यह दे पा रहे हैं । इससे वे बहुत अधिक सूचना प्राप्त करके जानकार तो बन रहे हैं, पर बुद्धिमान नहीं। आज कल्पनाशीलता खत्म होती जा रही है। पुस्तकों, पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों का पठन- पाठन लगभग शून्य होता जा रहा है। यह बात सही है कि, हमें युगानुरूप रहना और चलना भी चाहिए, पर कब, कितना, क्यों की जानकारी सहित।
बच्चों को स्मार्टफोन लेकर देना आपका अपना व्यक्तिगत निर्णय है, लेकिन यह लेने से पहले आपको कई बातों पर विचार करने की आवश्यकता होती है। बच्चे जरा से बड़े हुए नहीं कि, स्मार्टफोन की जिद करने लगते हैं। थक-हार कर माता-पिता को भी बच्चों को फोन दिलाना पड़ता है। हालात ये है कि, माता-पिता को चाहे सुरक्षा के नाम पर हो या फिर मनोरंजन के लिए बच्चों को कम उम्र में ही फोन लेकर देना पड़ता है। कारण चाहे जो भी हो, बच्चों को फोन लेकर देना कभी भी एक समझदारी भरा निर्णय नहीं हो सकता है क्योंकि, पहली बात यह है कि, आपका बच्चा पैसे को कितनी अच्छी तरह से संभालता है। अगर वह महंगी चीजों की देखभाल कर सकता है तो आप उसे स्मार्टफोन लेकर दे सकते हैं। इस बात को जानने की कोशिश भी करें कि, बच्चा कितना तकनीक-प्रेमी है और क्या वह फोन को आसानी से चला सकता है। अगर आपको लगता है कि, बच्चा हर समय अपने साथ फोन ले जाने के लिए पर्याप्त रूप से जिम्मेदार है तो फोन दीजिए।

कई बच्चे फोन का इस्तेमाल गैर-जिम्मेदाराना तरीके से करते हैं। इसलिए पहले इस बारे में विचार करना आपके लिए अच्छा रहेगा। अगर बच्चे के साथ आपको हमेशा संपर्क में रहने की जरूरत है तो, उसे फोन लेकर जरूर दीजिए।
सबसे आखिरी बात कि, क्या बच्चे आपकी बात सुनेंगे और सीमित समय के लिए फोन का उपयोग करेंगे ? इस बारे में सोच-समझ कर ही फैसला लें, क्योंकि यह बहुत बड़े नशे का रूप लेता जा रहा है और असाध्य बीमारी भी।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

Leave a Reply