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बन विधाता बैठा हर आदमी

आचार्य गोपाल जी ‘आजाद अकेला बरबीघा वाले’
शेखपुरा(बिहार)
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‘आजाद’ आज ऐसा क्यों हो गया है आदमी,
दूर अपनों से भला क्यों हो गया है आदमी।

चाहतें अपनी अपना बनाने के खातिर यहां,
अपनों को ही हर वक्त छलता रहा क्यों आदमी।

रंग गिरगिट सम सदा बदलता रहा है आदमी,
बन रहा खु़द-ब-खु़द ही भला हर हमेशा आदमी।

झूठे वादे हर घड़ी करता रहा है आदमी,
छल कपट झूठ फ़रेब की राह चलते आदमी।

भीड़ में रहकर बना है आजाद अकेला आदमी,
भूल रिश्ते की नज़ाकत किस राह पर है आदमी।

उस विधाता की बड़ी अनमोल रचना आदमी,
बन खुद विधाता आज बैठा है यहां हर आदमी॥

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