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बहुत नुकसानदायक परियोजना

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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केन-बेतवा नदी…

वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री पर धुआंधार शिलान्यास-उदघाटन बहुत सवार है। यह भी देखना है कि, उनके कार्यकाल में उनके द्वारा कितनी राशि की रेवड़ियाँ बांटी गई और कितनी बाकी है। एक बात समझ लो कि, पूरा लेखा-जोखा करने पर विकास के साथ विनाश भी किया गया है। जब सत्ता परिवर्तन होगा, तब उनके द्वारा कितना अन्य-आय (सुविधा शुल्क) दिलाया गया, जाँच का विषय होगा। वे स्वयं कितने भी ईमानदार होंगे, पर उनका हाल ‘अलीबाबा चालीस चोर’ जैसा है। उन्होंने चालीस चोरों को लूटने के लिए छोड़ा है। केन-वेतवा परियोजना जितनी लाभकारी होगी, उससे अधिक हानिकारक होगी।
हर सिक्के के २ पहलू होते हैं, इसी प्रकार हर बात के २ पक्ष-लाभ और हानि। आजकल हमने विकास के नाम पर इतनी अवैज्ञानिक योजनाओं को स्वीकार कर लिया है कि, होने वाले लाभ- हानि भविष्य के लिए कितने कष्टदायक होंगे, यह समझ ही नहीं रहे हैं। वैसे, नदियों को जोड़ना अवैज्ञानिक है। हर नदी के जल का अपना निजी स्वरूप होता है, उसकी प्रकृति अलग होती है। पानी की संरचना हाइड्रोजन व ऑक्सीजन से होती है और उसकी गुणवत्ता का स्थान अलग होता है। जब एक-दूसरे को जोड़ा जाता है, तब दोनों का जल अप्राकृतिक (डिनेचर्ड) हो जाता है और वे अपनी स्वाभाविकता त्याग देते हैं।
सबसे पहले तो इस परियोजना से पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के जीवों पर कितना घातक प्रभाव पड़ेगा ? इस परियोजना की लागत १८ हजार करोड़ के लगभग होगी तथा वर्तमान और कार्यान्वन के समय तक यह डेढ़ गुना होना निश्चित है। इसके लिए ९ हजार हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण करना होगा, जिसमें लगभग ५०१७ हे. भूमि पन्ना उद्यान की होगी। इसके लिए सरकार को अरबों रुपए की जरुरत पड़ेगी और जंगलों का नुकसान अकल्पनीय होगा। इसके अलावा अनेक गॉंव को खाली कराकर उनका पुर्नस्थापन करना होगा जिसके लिए भी करोड़ों रुपयों की जरुरत होगी। इसमें नौरादेही, दुर्गावती (दमोह) और रानीपुर (उत्तर प्रदेश) ३ राष्ट्रीय उद्यान प्रभावित होंगे तथा उनके बफर जोन के लिए भी अरबों रूपए खर्च करना होंगे। दोनों नदियों को जोड़ने में २२१ किलोमीटर की लम्बाई होगी तथा १ बांध बनाया जाएगा, जिनसे २ बिजली परियोजना बनेगी और प्रत्येक से ७८ मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा।
इस परियोजना से कई जिलों की भूमि को सिंचित किया जाएगा। इससे १३.४२ लाख आबादी को लाभ होगा, तथा हजारों घरों का विस्थापन होने से आबादी प्रभावित होगी। अनेक वनस्पतियाँ, जीव-जंतु की प्रजातियाँ (जैसे गिद्ध आदि) समाप्त हो जाएँगी।
उपरोक्त से यह ज्ञात होता है कि, सरकार इस परियोजना के माध्यम से कितना लाभ देगी और कितना विनाश होगा। जहाँ वह सिचाई का साधन बनकर आ रही है, उसके समान्तर वहाँ के निवासियों का विस्थापन होने से होने वाली परेशानियाँ और कई प्राकृतिक संसाधनों का एवं अनेक जीवों-वनस्पतियों का भी नुकसान होगा।
सबसे प्रमुख बात यह है कि, जब २ नदी का पानी मिलेगा, तब प्रत्येक पानी की गुणवत्ता समाप्त हो जाएगी। विकास के नाम पर होने वाले विनाश का कोई मूल्य सरकार के पास नहीं है। सरकार विस्थापन के नाम पर बन्दर बाँट कर असंतोष को जन्म देगी। फिर आंदोलन होंगे, हजारों लोगों की बलि चढ़ेगी और अरबों रुपयों का खेल होगा।
इसलिए, सरकार इस बात पर ध्यान जरूर रखे कि, जनता के लिए और उनके हितों का ध्यान रखकर काम करें, तो उचित होगा। अन्यथा विनाश अधिक होना, अर्थ का नुकसान, जनता में असंतोष और पर्यावरण को नुकसान करके ऐसी परियोजना लाना उचित नहीं होगा।

वर्तमान में विकास की जानकारी उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश आदि प्रांतों में देखने को मिल रही है, जहाँ मौतों के तांडव के साथ भवनों, होटल्स और पहाड़ों का कितना नुकसान हो रहा है। प्रकृति का दोहन और खिलवाड़ करना अंत में नुकसानदायक ही होगा, इसलिए अभी भी पुनर्चिन्तन का समय है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।