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बिना नीड़ के बया बिचारी

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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कटे पेड़ के ठूँठ विराजी,
बया मनुज को कोस रही।
बेघर होकर,बच्चे अपने,
संगी-साथी खोज रही।
मोह-प्रीत के बंधन उलझे,
जीवन हुआ क्लेश में।
जैसा भी है,अपना है यह,
रहना पंछी देश मेंll

हुआ आज क्या बदल गया क्यों,
कुटुम-कबीला नीड़ कहाँ।
प्रातः छोड़ा था बच्चों को,
सब ही थे खुशहाल यहाँ।
परदेशी डाकू आए या,
देशी दुश्मन वेश में।
जैसा भी है अपना है यह,
रहना पंछी देश मेंll

इंसानी फितरत स्वारथ की,
तरुवर वन्य उजाड़ रहे।
प्राकृत पर्वत नदियाँ धरती,
सबका मेल बिगाड़ रहे।
जन्मे-खेले बड़े हुए हम,
जैसे जिस परिवेश में।
जैसा भी है अपना है यह,
रहना पंछी देश मेंll

जिन पेड़ों से सब-कुछ पाया,
जीवनभर उपकार लिया।
मानव तुमने दानव बन क्यों,
तरुवर का अपकार किया।
पर्वत खोदे वन्य उजाड़े,
स्वारथ के आवेश में।
जैसा भी है अपना है यह,
रहना पंछी देश मेंll

प्रात जगाया मानव तुमको,
पंछी कलरव गान किया।
छत पर दाना चुगकर हमने,
बस बच्चों का मान किया।
पेड़ और पंछी को अब क्या,
देखोगे दरवेश में,
जैसा भी है अपना है यह,
रहना पंछी देश मेंll

तूने ठूँठ किया तरुवर को,
जिस पर नीड़ हमारे थे।
इस तरुवर वन में हमने,
जीवन राग सँवारे थे।
कैसे भूलें कैसे छोड़ें,
रहते मौज प्रदेश में।
जैसा भी है अपना है यह,
रहना पंछी देश में।
….रहना पंछी देश मेंll

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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