गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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लाल बहादुर शास्त्री जयंती विशेष…
स्वाधीनता के अमृत-महोत्सव काल में शास्त्री जी की जिन्दगी से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और सादगी की प्रतिमूर्ति लाल बहादुर शास्त्री दोनों का ही २ अक्टूबर को जन्मदिन है। सभी जानते होंगे कि, शास्त्री जी ने एक बार गाँधी जी के लहजे में ही कहा भी था कि, “मेहनत प्रार्थना के ही समान है”, क्योंकि वे गाँधी जी को अपना गुरु मानते थे। उन्हीं से उन्होंने सादगी और देश के प्रति प्रतिबद्धता सीखी।
अनेक ऐसे वाकये हैं, जिससे हँसमुख स्वभाव वाले शास्त्री जी की सादगी के अलावा कर्मठता, सरलता, नियमबद्धता,
दृढ़निश्चयता वगैरह स्पष्ट झलकती है।
यहाँ एक ऐसा वाकया, जिससे भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान रखने वाले शास्त्री जी का हँसमुख स्वभाव व स्पष्टवादिता एकसाथ जानने को मिलेगी।
वरिष्ठ लेखक-पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी अंतिम किताब ‘ऑन लीडर्स एंड आइकंस फ्रॉम जिन्ना टू मोदी’ में एक घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है कि, एक अवसर पर बहुत सारे अभिनेताओं के बीच प्रधानमन्त्री शास्त्री जी के साथ वे भी मौजूद थे। उस अवसर पर विश्वभर में अपनी सुन्दरता के लिए मशहूर मीना कुमारी (हिंदी सिनेमा में हमेशा नाटकीय और दुखद भूमिकाएँ निभा अपनी एक अलग पहचान बना कर काफी मशहूर थीं) ने लाल बहादुर शास्त्री को फूलों की माला पहनाई। माला ग्रहण करने के पश्चात बड़ी ही धीमी आवाज में शास्त्री जी ने कुलदीप नैयर से पूछा कि, “ये महिला कौन है ?” यह सुन कुलदीप जी ने शास्त्री जी की तरफ हैरानी से देखा। फिर बोले कि, “ये मशहूर अभिनेत्री मीना कुमारी हैं।” शास्त्री जी फिर भी न समझ पाए कि, ये महिला आखिर में कौन है।
अन्त में शास्त्री जी ने वहाँ उपस्थितजन समूह को सम्बोधित करते हुए सार्वजनिक तौर पर अपनी स्पष्टवादिता अनुसार मीना कुमारी की ओर मुखातिब हो माफी मांगते हुए बोल दिया कि, “माफ़ करिएगा मीना कुमारी जी, मैं आपको नहीं जानता। मैंने आपका नाम पहली बार सुना है।” शास्त्री जी की यह बात सुन कर मीना जी के चेहरे पर शर्मिंदगी का भाव आ गया था।
सावर्जनिक तौर पर इस तरह माफी वाली घटना से यह स्पष्ट होता है कि, सादगी पसन्द, न्यायप्रिय शास्त्री जी कितने सरल स्वभाव के साथ स्पष्टवादी थे।
उपरोक्त तरह के अनेक वाकये शास्त्री जी की जिन्दगी में परिलक्षित हुए हैं, जिसके द्वारा वे अपने चाहने वालों को ‘नि:स्वार्थ भाव से ज़िन्दगी में दिखावे से बचकर वो कार्य करना चाहिए जो असल में ज़रूरी है’ का संदेश बड़े ही सही तरीके से दे गए।
उनकी इसी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए मरणोपरान्त भारत सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।