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बैंक की नौकरी

डॉ. आशा मिश्रा ‘आस’
मुंबई (महाराष्ट्र)
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बी.कॉम. का दूसरा वर्ष समाप्त हुआ भी नहीं था और पिताजी ने मेरा विवाह तय कर दिया। मेरे लाख मना करने के बावजूद अच्छा घर और चिकित्सक वर मिल जाने के कारण पिताजी नहीं माने। मेरे ससुरालवालों को लड़की तो पढ़ी-लिखी चाहिए थी,लेकिन नौकरी करने की बंदिश थी।विवाह की तिथि छः-सात महीने बाद की निकली थी।
अंतिम वर्ष की पढ़ाई के साथ ही मैंने बैंक ऑफ इंडिया की परीक्षा दी और उत्तीर्ण हो गई। मेरा
साक्षात्कार एक हप्ते बाद होना था। मेरी इच्छा थी कि मैं साक्षात्कार देकर बैंक की नौकरी शुरू कर दूँ। माँ और पिताजी परेशान हो गए,ससुरालवालों को पता चलेगा तो बहुत नाराज़ होंगे,उन्होंने तो पहले ही कह दिया था कि हमें बहू से नौकरी नहीं करवानी है।
मेरे ससुर जी चिकित्सक थे,अगले दिन पिताजी उनके दवाखाने में जाकर उन्हें बता आए कि आशा ने बैंक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है और साक्षात्कार देना चाहती है। इतना सुनते ही ससुर जी आग-बबूला हो गए। उन्होंने कहा मैंने पहले ही कहा था कि हम नौकरी नहीं करवाएँगे,आपने बिना पूछे बैंक की परीक्षा क्यों देने दी ? विवाह के बाद वह हमारे साथ दवाखाने में हीं बैठेगी,उसे क्या ज़रूरत है नौकरी करने की…!
पिताजी की एक न चली। लड़की के पिताजी थे, मायूस होकर घर लौट आए। आने पर मुझको डाँटकर बोले,चुपचाप अपना ग्रैजूएशन समाप्त करो और नौकरी की बात अपने मन से निकाल दो। सारी रात मैंने रोकर बिताई,क्या लड़की होना सचमुच गुनाह है,लड़की के माता-पिता इतने कमज़ोर क्यों होते हैं,क्यों उन्हें ससुरालवालों के सामने झुकना पड़ता है…?? अनेक प्रश्न जिनका कोई सही उत्तर नहीं था।
विवाह के बाद पति की समझदारी के कारण मैंने बी.एड. किया और शिक्षिका बन कर अपनी अलग पहचान बनाई। शिक्षण क्षेत्र की सर्वोच्च डिग्री पीएच.-डी. तक की शिक्षा प्राप्त कर उपाधि हासिल कर ली। आदर्श शिक्षिका का सर्वोच्च पुरस्कार राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त कर माता-पिता का गौरव बढ़ाया और पति जिन्होंने मुझे कभी पढ़ाई के लिए नहीं रोका,उनका मान रखा। आगे चलकर सास-ससुर भी मेरी प्रगति को देख कर फूले नहीं समाते थे। आज हम सब ख़ुश हैं,परंतु आज भी जब बैंक ऑफ इंडिया की नौकरी की याद आती है तो मेरा मन भर आता है।

परिचय–डॉ. आशा वीरेंद्र कुमार मिश्रा का साहित्यिक उपनाम ‘आस’ है। १९६२ में २७ फरवरी को वाराणसी में जन्म हुआ है। वर्तमान में आपका स्थाई निवास मुम्बई (महाराष्ट्र)में है। हिंदी,मराठी, अंग्रेज़ी भाषा की जानकार डॉ. मिश्रा ने एम.ए., एम.एड. सहित पीएच.-डी.(शिक्षा)की शिक्षा हासिल की है। आप सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापिका होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत बालिका, महिला शिक्षण,स्वास्थ्य शिविर के आयोजन में सक्रियता से कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-गीत, ग़ज़ल,कविता एवं लेख है। कई समाचार पत्र में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। सम्मान-पुरस्कार में आपके खाते में राष्ट्रपति पुरस्कार(२०१२),महापौर पुरस्कार(२००५-बृहन्मुम्बई महानगर पालिका) सहित शिक्षण क्षेत्र में निबंध,वक्तृत्व, गायन,वाद-विवाद आदि अनेक क्षेत्रों में विभिन्न पुरस्कार दर्ज हैं। ‘आस’ की विशेष उपलब्धि-पाठ्य पुस्तक मंडल बालभारती (पुणे) महाराष्ट्र में अभ्यास क्रम सदस्य होना है। लेखनी का उद्देश्य-अपने विचारों से लोगों को अवगत कराना,वर्तमान विषयों की जानकारी देना,कल्पना शक्ति का विकास करना है। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद जी हैं।
प्रेरणापुंज-स्वप्रेरित हैं,तो विशेषज्ञता-शोध कार्य की है। डॉ. मिश्रा का जीवन लक्ष्य-लोगों को सही कार्य करने के लिए प्रेरित करना,महिला शिक्षण पर विशेष बल,ज्ञानवर्धक जानकारियों का प्रसार व जिज्ञासु प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी भाषा सहज,सरल व अपनत्व से भरी हुई भाषा है।’

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