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भाजपा पर लगी रोक…सबक लेगी

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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विधानसभा चुनाव……..
मैंने लिखा था कि हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों में यदि भाजपा को प्रचंड बहुमत याने क्रमशः ७५ और २४० सीटें मिल गईं तो भाजपा सरकारें ऐसी हो जाएंगी,जैसे बिना ब्रेक की गाड़ी हो जाती है लेकिन दोनों प्रदेशों की जनता को अब भाजपा की ओर से धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि उसने भाजपा की गाड़ी पर ब्रेक(रोक, विराम) लगा दिया है। दोनों प्रदेशों में भाजपा ने सीटें खोई हैं। हरियाणा में तो उसे साधारण बहुमत भी नहीं मिला है,और इस बार शिव सेना के साथ गठबंधन करने के बावजूद उसकी सीटें काफी घट गई हैं। यह ठीक है कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने लायक सीटें भाजपा गठबंधन को मिल गई हैं। हरियाणा में भी जोड़-तोड़ करके सरकार बनाना उसके लिए ज्यादा कठिन नहीं होगा। गोवा,कर्नाटक और अरुणाचल के उदाहरण हमारे सामने हैं लेकिन ऐसी सरकारें कितनी जन-सेवा कर पाएंगी,इसका अंदाजा हम लगा सकते हैं। उनके सिर पर अस्थिरता की तलवार बराबर लटकती रहती है। महाराष्ट्र में शिव सेना को भाजपा के मुकाबले बेहतर सफलता मिली है। उसकी कीमत वह जरुर वसूलेगी। वह तो अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहती थी,लेकिन शायद वह उप-मुख्यमंत्री का पद लेकर चुप हो जाए लेकिन यह निश्चित है कि उनमें तनाव सदा बना रहेगा। इसी आपसी कहा-सुनी का दुष्परिणाम इन दोनों पार्टियों को महाराष्ट्र की जनता ने भुगता दिया है। दोनों प्रदेशों की जनता से ‘एक्जिट पोल’ वालों ने जो उम्मीदें रखी थीं,वे बिल्कुल गलत साबित हुई हैं और यह बात भी गलत साबित हुई है कि हमारी जनता भाजपा को सिर पर बिठाने के लिए मजबूर है। दोनों प्रदेशों की जनता ने दिखा दिया है कि वह मजबूर नहीं है। उसने भाजपा के कान उमेठ दिए हैं। उस पर भाजपा और कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व का असर बिल्कुल भी नहीं दिखा। अगर वह दिखता तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो जाता और दोनों प्रदेशों में भाजपा को अपूर्व बहुमत मिल जाता। मोदी ने चुनाव के एक दिन पहले पाकिस्तान के खिलाफ ‘सर्जिकल स्ट्राइक'(फर्जीकल) का दांव मारा,लेकिन वह बेकार हो गया और राहुल गांधी का जो हाल पहले था,वह अब भी जारी रहा। दूसरे शब्दों में महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव प्रादेशिक नेतृत्व और प्रादेशिक मुद्दों पर ही हुए हैं। हरियाणा में जातिवाद की दस्तक भी जोरदार रही। अब दिल्ली प्रदेश के चुनाव सिर पर हैं। पता नहीं,भाजपा और कांग्रेस का यहां हश्र कैसा होगा। केन्द्र सरकार के लिए अब कठिनाई का दौर शुरु हो गया है। आशा है, अब वह कुछ सबक लेगी।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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