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भारतीय भाषाओं के उन्नयन के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता

सूर्यमणिनगर (त्रिपुरा)।

भाषा हमारी परम्परा और संस्कृति की वाहिका है। भारत को किसी अन्य भाषा पर गौरव करने की जरूरत नहीं है। अंग्रेजी की बौद्धिक दासता से मुक्त होकर भारतीय भाषाओं के उन्नयन के लिए सामूहिक रूप से प्रयास करने की आवश्यकता है।
विशिष्ट अतिथि प्रो. संजीव कुमार शर्मा (पूर्व कुलपति, महात्मा गाँधी केन्द्रीय विवि, बिहार) ने यह बात सूर्यमणि नगर में कही। अवसर रहा साहित्य संकाय (त्रिपुरा विवि), भारतीय भाषा समिति (भारत सरकार) और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास (दिल्ली) के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतीय भाषा सम्मेलन’ के आयोजन का, जो ४ सत्र में विभक्त रहा। सर्वप्रथम चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन प्रो. गंगा प्रसाद प्रसाईं (कुलपति, त्रिपुरा विवि) की अध्यक्षता में हुआ। उद्घाटन सत्र में मंचस्थ अतिथियों ने दीप प्रज्वलन किया। तत्पश्चात अतिथियों का स्वागत किया गया। प्रो. विनोद कुमार मिश्र (कार्यक्रम संयोजक व अधिष्ठाता- साहित्य संकाय) ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि, भारतीय भाषाओं में ज्ञान की अथाह राशि संचित है, उन्हें समयानुकूल व्याख्यायित करने की जरूरत है। समिति के अध्यक्ष चमूकृष्ण शास्त्री का तरंगाधारित संदेश प्रस्तुत किया गया।
विशिष्ट अतिथि प्रो. सत्यदेव पोद्दार (कुलपति) ने भाषाओं की महत्ता पर बल दिया। प्रो. प्रसाईं ने अध्यक्षीय उद्बोधन में नई शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं के प्रावधान को विस्तार से विवेचित करते हुए कहा कि हमें आरंभिक स्तर पर यह प्रयास करना होगा कि, बंगला, हिंदी और इसी तरह की अन्य भाषाओं को न जानने वाले लोगों के लिए पहले आरंभिक स्तर पर इस भाषा का ज्ञान कराया जाए। इस सत्र का संचालन डॉ. ऐश्वर्या झा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. देवराज पाणिग्रही ने किया।
द्वितीय सत्र भारतीय भाषाओं के लिए ‘भारत सरकार द्वारा प्रारंभ हुए प्रयास एवं करणीय कार्य’ विषय पर केन्द्रित रहा। इस सत्र में वक्ता प्रो. अवधेश कुमार चौबे (अध्यक्ष, बौद्ध दर्शन एवं पालि विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विवि) और डॉ. निर्मल दास (त्रिपुरा विवि) रहे। अध्यक्षता प्रो. संजीव कुमार शर्मा (पूर्व कुलपति, महात्मा गाँधी केन्द्रीय विवि, बिहार) ने की। तृतीय सत्र ‘भारतीय भाषा परिस्थितिकी निर्माण’ पर केन्द्रित रहा। इसमें वक्ता नंदकुमार देबबर्मा (साहित्यकार, कॉकबरक) और डॉ. नेत्रा रावंकर (पूर्व प्राचार्य) रहे। अध्यक्षता डॉ. प्रेमलता चुटेल (पूर्व आचार्य) ने की। प्रो. चुटेल ने न्यास का परिचय दिया। संचालन डॉ. बीना देबबर्मा ने किया।
सपूर्ति सत्र में सर्वप्रथम डॉ. आलोक कुमार पाण्डेय (हिंदी विभाग, त्रिपुरा विवि) ने सम्मेलन का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। सत्र का संचालन डॉ. विश्वबंधु ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. काली चरण झा ने किया।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)