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भारत का स्वर्णिम युग

रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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आजाद भारत की उड़ान…

मनुष्य का मन एक ऐसा पंख पखेरू है, जो हमेशा उड़ने को तत्पर रहता है, और यही उड़ान उसे उपलब्धि भी प्रदान करती है। यदि मनुष्य ने उड़ने की कल्पना की तो उसको सत्य की धरती पर भी हवाई जहाज के रूप में उतारा ।
आज हम भारत का ७७ वां स्वाधीनता दिवस मना रहे हैं और हमारे मन की कल्पना पुनः एक स्वच्छ भारत, भ्रष्टाचार मुक्त भारत, ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ भारत की कल्पना कर रहा है, तो इसमें न ही बुराई है, न ही यह थोथी कल्पना है। इसे जरा-सा प्रयत्न करके हम हासिल कर सकते हैं। यदि भारत के प्रति हमारा लगाव है, तो वह दिन दूर नहीं, जब हम सचमुच भारत को विश्व का प्रथम देश बना सकते हैं।
जब ७५वां वर्ष मना रहे थे, तभी हमने भारत की २०४७ की स्वर्ण जयन्ती के रूप में कल्पना कर ली थी, और उसी कल्पना को चरितार्थ करने के लिए हम २०२२ से ही तत्पर हो रहे हैं। हम जैसा सोचते हैं, वैसा बनते जाते हैं, और हमारी सोच यही है कि हम अपने विकासशील भारत को विकसित श्रेणी में ले आएँ। इसके लिए हमें जी-जान से केवल प्रयत्न ही नहीं करना होगा, बल्कि पुराने वर्ष को बारीकी से परखकर उसके सही-गलत का आंकलन करें।
पर्शी विले शैली के अनुसार- -“इतिहास एक चक्रीय कविता समय से लिखा आदमी की यादो पर है, चलिए उन्ही यादो को ताजा करते हुए 2010 से भारत की प्रमुख घटनाओ को हस्तगत कर लेते हैं ।
भारत को आतंकवादी कसाब से मुक्ति मिली तो १९वे राष्ट्रवादी खेल में ३८ स्वर्ण पदक प्राप्त करके अच्छा प्रदर्शन किया, पर भ्रष्टाचार के घोटालों के छींटे भी हमारे ऊपर पड़े।
राजनीति के कटघरे में हमने कई राजनेताओं के चेहरों को बंद होते हुए देखा, दूसरी ओर भारत के महान चेहरों को उजागर होते हुए देखा, जो इतिहास की भूल के कारण धूमिल हो गए थे। जैसे-सुभाष चन्द्र बोस, महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, चन्द्रशेखर आजाद, खुदीराम बोस इत्यादि।
भारत के भाग्याकाश में नरेन्द्र मोदी का २०१४ से लेकर अब तक का कार्य काल है, जिन्होंने
कईं योजनाएँ ‘सबका साथ सबका विकास’ के विश्वास के आधार पर चलाई जो फलीभूत हुई। स्वच्छ भारत योजना, जन-धन योजना, उज्ज्वला योजना, आवास योजना आदि के साथ मेक इन इण्डिया व डिजिटल इंडिया आदि पर भी जोर देकर भारत को नई दिशा दी। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जीएसटी एवं नोट बंदी करके भ्रष्टाचारियों को यह बता दिया कि, अब उनकी दाल नहीं गलेगी।
यह बात स्वाभाविक है कि, जहाँ विकास की नींव खोदी जाती है, वहीं कुछ अराजक तत्व अपना फन फैलाकर विकास की गति को अवरूद्ध भी करना चाहते हैं। इसी के तहत कई आन्दोलन, कई हिंसागत वारदातें भी हुई। ऐसे ही लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर का रास्ता तय किया तो हम जो पहले लकीर के फकीर बने हुए थे, अब जाग गए हैं।
अब सत्ता का जोर नहीं चलने वाला है। जनता को जगाना, और वह भी इस भारत की विशाल जनता को, कोई हँसी- खेल नहीं। हम अब तक इसमें कामयाब हुए हैं, तो आगे भी होंगे। इसी आशा एवं विश्वास के साथ आजादी के स्वर्ण युग की परिकल्पना हमारी सोच ही नहीं, हमारा कर्तव्य भी है।