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भारत की आर्थिक तरक्की से चकित विश्व

ललित गर्ग
दिल्ली
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भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे अधिक तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गई है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्रीय वार्ता को संबोधित करते हुए सतत विकास के प्रति देश की प्रतिबद्धता पर बल दिया। वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन को रेखांकित करते हुए उन्होंने भविष्यवाणी की कि, २०२७ तक भारत जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत के आर्थिक विकास में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘वॉकल फोर लॉकल’ का आह्वान आर्थिक विकास का आधार बन रहा है। स्व-भाव एवं स्वदेशी के मंत्र ने आर्थिक विकास को पंख लगाए हैं, जिससे अर्थ की गाड़ी तेज रफ्तार से दौड़ने लगी है। भारत की आर्थिक तरक्की दुनिया को स्तम्भित करने लगी है, क्योंकि भारत का घरेलू बाजार ही इतना विशाल है कि, विदेशी व्यापार पर बहुत अधिक निर्भरता नहीं करनी पड़ रही है। भारत के बाजार से कई देशों का आर्थिक विकास होता रहा है, अब स्वदेश जागरण से देश का अर्थ देश में ही रहने लगा है।
चीन की अर्थव्यवस्था सबसे तेज गति से दौड़ी थी और आर्थिक विकास में विदेशी व्यापार का सर्वाधिक योगदान था, परंतु आज भारत की आर्थिक प्रगति में घरेलू कारकों एवं मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों का प्रमुख योगदान है। वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भारत की आर्थिक वृद्धि केवल ७ प्रतिशत से कम होने का अनुमान है, जो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। सकल घरेलू उत्पाद ५ ट्रिलियन अमरीकी डालर को पार कर जाएगा। भारत की ‘नीली अर्थव्यवस्था’ का सकल घरेलू उत्पाद में लगभग ४ प्रतिशत योगदान है, जो अवसरों के सागर का प्रतिनिधित्व करता है। तट के किनारे ९ राज्यों, ४ केंद्र शासित प्रदेशों, १२ प्रमुख और २०० से अधिक गैर-प्रमुख बंदरगाहों एवं नौगम्य जलमार्गों के व्यापक नेटवर्क के साथ भारत महासागर आधारित व्यापार में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में खड़ा है।
भारत के आर्थिक विकास में प्रधानमंत्री की नित-नई आर्थिक योजनाओं, अपनी जड़ों एवं माटी से जुड़ने, स्वदेशी अपनाने की प्रेरणा एवं विदेश यात्राओं का भी योगदान है। भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कनेक्टिविटी कॉरिडोर (आईएमईसी) सबसे आशाजनक जुड़ाव परियोजनाओं में से एक है। भारत चीन से भी आगे निकलकर विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन चुका है, बड़ी आबादी को आर्थिक विकास का माध्यम बनाने में सरकार की सूझ-बूझ एवं योजनाएं कारगर साबित हो रही हैं। बड़ी आबादी के अनेक तरह के नुकसान हैं, तो इसी से भारत में उत्पादों का उपभोग तेजी से बढ़ रहा है। इस तरह भारत न केवल उत्पादों के उपभोग का प्रमुख केंद्र बन बन रहा है, बल्कि विश्व के लिए एक विनिर्माण केंद्र के रूप में भी उभर रहा है।
सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत पूर्व में ही वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े केंद्र के रूप में विकसित हो चुका है। भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार वर्तमान स्तर ३.५० लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष २०३१ तक ७.५ लाख करोड़ के स्तर पर पहुंच जाएगा और इस प्रकार अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। आगे आने वाले १० वर्षों के दौरान आर्थिक क्षेत्र में भारत पूरी दुनिया का नेतृत्व करने जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्विक स्तर पर ‘महाशक्ति’ बनने के पीछे भारत के विशाल आंतरिक बाजार, स्व-भाव एवं स्वदेशी का दर्शन मुख्य कारण है। आम जनता में स्व का भाव जगा कर, उनमें राष्ट्र प्रेम एवं स्व-संस्कृति की भावना विकसित करना भी आवश्यक है। इससे आर्थिक गतिविधियों को देशहित में करने की इच्छा-शक्ति जागृत होती है।
निश्चित ही भारत की आर्थिक प्रगति एक सुखद संकेत है, शीघ्र ही भारत विकासशील देशों के वर्ग से निकलकर विकसित देश हो जाएगा। एक दशक में भारत दसवें क्रम की अर्थव्यवस्था से तरक्की करके दुनिया की पांचवीं आर्थिक महाशक्ति बन गया। अनुमान है कि, २ साल के अंदर हम तीसरी आर्थिक शक्ति बन जाएंगे। निस्संदेह इस वक्त भारत की आर्थिक विकास दर का सूचकांक दुनिया में सर्वाधिक है, जो आर्थिक महाशक्ति बनने का संकेत है। भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने को सकारात्मक रूप देने की अपेक्षा है, जिसमें गरीबी एवं भूखमरी का कलंक मिटना जरूरी है। आजादी के अमृत महोत्सव तक की आर्थिक यात्रा का लक्ष्य अब प्रजातांत्रिक समाजवाद एवं समतावादी समाज संरचना को हासिल करने का हो, तो देश में मानवीय मूल्यों, शांति एवं अहिंसक सिद्धांतों और आर्थिक समानता पर ध्यान देना होगा। भारत ने इस संदर्भ में पूरे विश्व को राह दिखाई है। इसी से गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे नागरिकों को यह व्यवस्था कल का मध्यम वर्ग बनाएगी। इससे देश में विभिन्न उत्पादों का उपभोग बढ़ेगा तथा देश की आर्थिक उन्नति की गति भी तेज होगी। यह भारतीय सनातन संस्कारों के चलते ही सम्भव हो पाया है।
‘कोरोना’ महामारी के दौरान एवं बाद में विशेष रूप से प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्याण योजना के अंतर्गत देश के ८० करोड़ नागरिकों को मुफ्त अनाज की जो सुविधा दी गई है, के परिणामस्वरूप गरीब वर्ग को बहुत लाभ हुआ है और गरीब देश होने के दंश से यह तेजी से उबरने लगे हैं। वर्ष २०२२ में विश्व बैंक द्वारा जारी एक प्रतिवेदन के अनुसार पिछले २ दशक के दौरान भारत में ४० करोड़ से अधिक नागरिक गरीबी रेखा से ऊपर आ गए हैं। दरअसल, पिछले लगभग ९ वर्षों के दौरान भारत के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में कई बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। इसके चलते भारत में गरीबी तेजी से कम हुई है और बहुत बड़ी सफलता प्राप्त हुई है। भारत में गरीबी का जो बदलाव आया है, वह धरातल पर दिखाई देता है। इससे पूरे विश्व में भारत की छवि बदल गई है। भारत की आर्थिक सोच, नीतियाँ एवं योजनाएं अब दुनिया के लिए अनुकरणीय बन रही है। दुनिया भारत की ओर संभावनाओं एवं आशाओं की नजर से देखने लगी है, यह बड़ा एवं सकारात्मक परिवर्तन न केवल आर्थिक महाशक्ति बल्कि विश्व का नेतृत्व करने की क्षमताओं का संकेत दे रहा है, जो सुखद है।