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भारत-रुस:नई ऊंचाईयां

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह रुस-यात्रा भारतीय प्रधानमंत्रियों की पिछली कई यात्राओं के मुकाबले कहीं अधिक सार्थक रही है। उसका पहला प्रमाण तो यही है कि पूर्वी आर्थिक मंच के बहुराष्ट्रीय सम्मेलन में मोदी को मुख्य अतिथि बनाया गया है। दूसरी बात यह है कि मोदी और पुतिन,दोनों ने साफ-साफ कहा है कि किसी भी देश को अन्य देश के आंतरिक मामलों में टांग अड़ाने का कोई अधिकार नहीं है। पुतिन का यह बयान क्या ख्रुश्चौफ और बुल्गानिन के उस बयान की याद नहीं दिलाता है,जो उन्होंने अपनी पहली यात्रा के दौरान प्र.म. नेहरु के सामने दिया था ? उन्होंने कहा था कि कश्मीर में आपको कोई खतरा हो तो आप हमें आवाज़ दीजिए,हम आप खातिर दौड़े चले आएंगे। शीतयुद्ध के दौरान पाकिस्तानपरस्त अमेरिका को टक्कर देने के हिसाब से यह बात ठीक थी लेकिन पिछले दो-ढाई दशक में रुस-अमेरिका समीकरण बदलने के कारण कश्मीर पर रुसी रवैया थोड़ा ढीला हो गया था। उसने पाकिस्तान के साथ भी पींगें बढ़ानी शुरु कर दी थीं,लेकिन रुस के इस ताजा रवैए ने भारत-रुस दोस्ती पर फिर से पक्की मुहर लगा दी है। भारत और रुस ने तरह-तरह के २५ समझौतों पर दस्तखत किए हैं। अभी भी रुस भारत का सबसे बड़ा हथियार-विक्रेता है। यों तो आजकल भारत-अमेरिका के बीच घनिष्टता अपूर्व रुप से बढ़ी हुई है और ट्रम्प का रवैया कश्मीर के मामले में भारतपरस्ती का है और अमेरिका यह भी चाहता है कि सुदूर पूर्व में भारत की भूमिका बलवती हो,ताकि चीन के प्रभाव को सीमित किया जा सके। इस मामले में रुस भी पीछे नहीं है। रुस वैसे चीन से अच्छे संबंध बनाए हुए हैं लेकिन चीन के महान रेशम पथ की योजना से वह सहमत नहीं है। वह चाहता है कि भारत मध्य एशिया के राष्ट्रों और सुदूर-पूर्व के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। इसीलिए ब्लादिवस्तोक में होने वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत को केन्द्र में रखा गया है। जाहिर है कि,इससे पाकिस्तान परेशान होगा। इस समय सउदी अरब और संयुक्त अरब अमारात के विदेश मंत्री हताश इमरान सरकार के पिचके हुए गुब्बारे में थोड़ी हवा जरुर भरेंगे,लेकिन अब पाकिस्तान का भला इसी में है कि खुद के दिमाग में फंसी भारत-गांठ को खोल दे और अपना ध्यान संकट में फंसे अपने देश पर केन्द्रित करे।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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