ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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एक भिखारिन,
चीथडों में लिपटी
कोने में सिमटी,
मांग रही थी भीख
आने-जाने वालों को,
सुखी रहने की
दे रही थी सीख।
मैंने पूछा,-
हष्ट-पुष्ट लगती हो
फिर भी,
भीख मांग कर खाती हो।
वो कुछ शर्माई,
फिर मुझ पर गुर्राई
बोली,-
तुम दोगे मुझको काम,
बदले में क्या लोगे!
मेरी इज्जत,
मारोगे, पीटोगे
फिर बना लोगे गुलाम।
मैं हतप्रभ था,
सुनकर उसका जवाब
शायद उसके भी,
टूटे होंगे कोई ख्वाब।
उसके शब्द भेदी बाणों ने,
मेरे मर्म को छलनी कर दिया
कितना दर्द सहती है नारी,
ये अहसास दिला दिया।
उसकी आँखों में,
मजबूरी के आँसू
झलक रहे थे,
उसके हाथ-पैर भी शायद
कांप रहे थे।
अबला नारी का दर्द क्या होता है,
मुझे आज समझ में आया है
सदियों से नारी का बस,
शोषण ही होता आया है।
मैंने कहा-अबला नहीं,
तू सबला है
इतिहास उठा कर देख,
नारी ने भी लिया बदला है।
उठ! हिम्मत न हार,
कर दुश्मन का संहार।
तू ही जीवन का आधार,
तुझसे ही बना है ये संसार॥
परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।