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धरोहर

डॉ.अर्चना मिश्रा शुक्ला
कानपुर (उत्तरप्रदेश)
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विश्व पुस्तक दिवस स्पर्धा विशेष……

बचपन का वह दिन याद आता है,
जब नया दाखिला,नई पुस्तकों के साथ।
मन हर्षाया-सा हर पन्ना पलटता था,
‘उठो लाल अब आँखें खोलो’
गीत के साथ दिनचर्या।
कभी ‘चुन्नी लाल मुन्नी का पाठ’,
सावधानी सिखाता,धूर्तों की पहचान कराता।
तो कभी ‘बन्दर लाया एक बन्दरिया’,
हँसा-हँसा कर लोटपोट करा देता।
‘चाँद का कुर्ता’ तो ऐसा भावुक करता ???
कि माँ से अनसुलझे प्रश्नों की झड़ी लगा देता।
कभी रो भी पड़े,चाँद की विवशता पर।
हमारी धरोहर पुस्तकें…

घंटे और शंख की ध्वनि पर,
आरती की पुस्तकें।
सभी हाथों पर आती,
रामचरित मानस देखकर हतप्रभ होते।
इतनी मोटी किताब लेने को आतुर,
बड़ी शुद्धता और पवित्रता से
मानस में हाथ लगाते।
हमारी धरोहर पुस्तकें…

इधर नंदन,चंपक और बालहंस,
तो उधर…
कॉमिक बुक भी धमाल मचाती।
‘चाचा चौधरी और साबू’,
‘अकबर और बीरबल’…
तेनालीराम के किस्से’
हर बच्चे की जुबान पर आते।
हमारी धरोहर पुस्तकें…

दादी-बाबा,नानी-नाना की,
कहानियों की पोटली
गर्मियों की छुट्टियों,
सर्दियों की रात
हम बच्चों को उनके पास ला देती।
हमारी धरोहर पुस्तकें…

हमारी प्यारी यादें समेट कर,
पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाया है
कब हम सूर,कबीर,तुलसी,
और गीत मीरा के गुनगुनाने लगे
बढ़ते गए और किताबों से जुड़ते गए।
हमारी धरोहर पुस्तकें…

महादेवी,निराला और पंत,
प्रेमचंद तो हमारी जान बन गए
आदर्श और जीवन की गूढ़ता,
यह पुस्तकों में भर गए।
हमारी धरोहर पुस्तकें…

आर्यभट्‌ट,
रामानुजन गणित को जो दे गए
पुस्तकें संजो रही हैं,
गणित की कठिनाइयां।
हमारी धरोहर पुस्तकें…

वसु,बोस और कलाम ने,
जो खोज दुनिया में की
यह पुस्तकें ही दे रहीं,
हल पुस्तकें ही दे रही।
यह ज्ञान का भण्डार हैं,
दुनिया के हर भू-भाग का,
भूगोल पुस्तक दे रही।
हमारी धरोहर पुस्तकें…

चहुँ दिशाओं और भ्रमण का,
ज्ञान देश-विदेश का
हो रहे लंबे सफर में,
यह सदा साथी बनें
है जो अपनापन किताबों संग मेरे साथियों,
पुस्तकों के संग अपना चाव और लगाव है।
हमारी धरोहर पुस्तकें…

व्यक्तित्व का निर्माण है,
मस्तिष्क का व्यायाम है
भोज्य के समान है,
मित्र यह महान है
आज की यह मांग है,
हम पढ़ें,बच्चे पढ़ें।
रिश्ते सुदृढ़ करते चलें,
हमारी धरोहर पुस्तकें…॥

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