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मंज़र नहीं देखा…

वकील कुशवाहा आकाश महेशपुरी
कुशीनगर(उत्तर प्रदेश)

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भीतर की हलचलों का वो मंज़र नहीं देखाl
सबने मुझे देखा,मेरे अंदर नहीं देखाl

सब लोग मानते रहे हैं कोयला मुझे,
हीरे को जौहरी ने भी छूकर नहीं देखाl

हँसते हुए ही तो मुझे देखा है रात-दिन,
अश्कों का मेरे तूने समंदर नहीं देखाl

घायल जो मैं हुआ हूँ तो इल्ज़ाम दूँ किसे,
मैने किसी के हाथ में पत्थर नहीं देखाl

मंजिल के वास्ते सदा भटका हूँ दर-ब-दर,
सो कर महज़ यूँ स्वप्न ही सुंदर नहीं देखाl

आकाश हँस रहे हो क्यूँ बेबस गरीब पर,
क्या तुमने भी बदलता मुक़द्दर नहीं देखाll

परिचय-वकील कुशवाहा का साहित्यिक उपनाम आकाश महेशपुरी है। इनकी जन्म तारीख २० अप्रैल १९८० एवं जन्म स्थान ग्राम महेशपुर,कुशीनगर(उत्तर प्रदेश)है। वर्तमान में भी कुशीनगर में ही हैं,और स्थाई पता यही है। स्नातक तक शिक्षित श्री कुशवाहा क़ा कार्यक्षेत्र-शिक्षण(शिक्षक)है। आप सामाजिक गतिविधि में कवि सम्मेलन के माध्यम से सामाजिक बुराईयों पर प्रहार करते हैं। आपकी लेखन विधा-काव्य सहित सभी विधाएं है। किताब-‘सब रोटी का खेल’ आ चुकी है। साथ ही विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आपको गीतिका श्री (सुलतानपुर),साहित्य रत्न(कुशीनगर) शिल्प शिरोमणी सम्मान(गाजीपुर)प्राप्त हुआ है। विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी से काव्यपाठ करना है। आकाश महेशपुरी की लेखनी का उद्देश्य-रुचि है।

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