अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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दीप जलाएँ
करें दूर अँधेरा
मन मिलाएँ।
बैर रहे न
ऐसे मिले हृदय
कोई कहे न।
दीप से दीप
निराला दीपोत्सव
खुशी की रीत।
बुलाएँ लक्ष्मी
हल्दी से बनाएँ ॐ
आए संपत्ति।
हो दीपदान
मिले विघ्न से मुक्ति
मिटे अज्ञान।
घर-बाहर
फैलाएँ यूँ रोशनी
नहीं हो डर।
दो यूँ मुस्कान
हर चेहरा खिले
हो पहचान।
हो पुरूषार्थ
संग हो अंतर्मन
छोड़िए स्वार्थ।
प्रभु कृपा से
धन सदा बढ़ेगा
है महायंत्र।
दे गन्ना गज
बाधा संग संकल्प
बुरा दे तज॥