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मर्यादा के प्रतीक प्रभु श्रीराम

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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श्रीराम नवमी-१० अप्रैल विशेष…

सनातन धर्मानुसार मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम को भगवान विष्णु का सातवाँ अवतार माना गया है,जिन्होंने त्रेतायुग में पृथ्वी पर भगवान शिवजी के उपासक राक्षसी प्रवृत्ति वाला लंकाधिपति रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुन: स्थापना के लिए चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को अयोध्यापति दशरथजी के यहाँ जन्म लिया था।
प्रभु श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इन्होंने कभी भी, कहीं भी भूलकर जीवन में किसी रूप में मर्यादा का उल्लंघन किया ही नहीं। उनके मुख पर कभी भी ‘क्यों’ शब्द आया ही नहीं, बल्कि वे खुशी-खुशी माता-पिता और गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए सभी के समक्ष एक उदाहरण पेश किए हुए हैं। अर्थात उन्होंने एक आदर्श पुत्र कहिए या शिष्य के अलावा भाई,पति, पिता व राजा की ऐसी आदर्श भूमिका निभाई, जो एक मिसाल के रूप में दर्ज है।
सभी जानते हैं कि, माता शबरी के झूठे बेर खा उन्हें नवधा भक्ति प्रदान की थी। इसी प्रकार केवट की भक्ति भाव से प्रसन्न हो उसे गंगा पार करवाने के बदले भवसागर से ही पार लगा दिया। सर्वविदित है कि, प्रभु श्रीराम चाहते तो मात्र एक बाण से सागर को सुखा सकते थे, लेकिन विनय भाव से सागर से मार्ग की न केवल विनती की, बल्कि उनकी सलाहनुसार सेतु निर्माण की व्यवस्था की। यह स्पष्ट है कि सद्गुणों से सम्पन्न प्रभु श्रीराम ने असामान्य होते हुए भी सभी के बीच आम ही बने रह कर एक ऐसा उदाहरण पेश किया है, जिसके चलते ही आज भी सभी बड़े ही गर्व से उनके आदर्श ‘रघुकुल रीत सदा चली आयी, प्राण जाय पर वचन जाय’ को
उद्धृत करते नहीं थकते।
हाल ही में सुप्रसिद्ध राष्ट्रवादी गीतकार और पटकथा लेखक मनोज मुंतशिर ने यह कहा कि, अगर प्रेम की निशानी देखनी है तो उस पुल को देखिए, जिसे प्रभु श्री राम ने अपनी प्राणप्रिय सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए समुंदर के बीच में बना दिया था, तब वहाँ उपस्थित जनों ने करतल ध्वनि से सहमति जताई।
एक रोचक जानकारी कि ११ दिसंबर २०१७ को अमेरिका के साइंस चैनल ने बताया कि भारत-श्रीलंका को जोड़ने वाले पत्थर के पुल ‘रामसेतु’ के पत्थर और रेत पर किए गए परीक्षण से ऐसा लगता है कि पुल बनाने वाले पत्थरों को बाहर से लेकर आए थे और ३० मील से ज़्यादा लंबा ये पुल मानव निर्मित है। यही तथ्य वाल्मीकि रामायण में विस्तार से बताते हुए लिखा गया है कि लंका पर चढ़ाई करते समय भगवान श्रीराम के कहने पर वानरों और भालुओं ने रामसेतु का निर्माण किया था।
हम सभी श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम मानते हैं। उसी को पुष्ट करता रोचक वाकया-अयोध्या की गद्दी सम्भालने के बाद जब वे लंका के अधिपति विभीषण का हाल जानने के लिए भाई भरत व सुग्रीव के साथ लंका पहुँचे तो ३ दिन रुक विभीषण को धर्म-अधर्म का ज्ञान दिया। वापसी के लिए भाई भरतजी को जब इशारा किया, उसी समय लंकाधिपति विभीषण ने शंका जताते हुए श्रीराम से जानना चाहा कि जब इस सेतु (पुल)मार्ग से मानव यहाँ आकर मुझे सताएंगे, उस परिस्थति में उनको कैसे संभालना है ? इतना सुनते ही बिना विलम्ब प्रभु ने अपने बाणों से उस सेतु के ३ टुकड़े ही नहीं कर दिए, बल्कि बीच का हिस्सा भी अपने बाणों से तोड़ दिया।
उपरोक्त सभी तथ्यों का निचोड़ यही है कि यदि वर्तमान समय में हम इन आदर्शों को अपना लेते हैं, तो हर क्षेत्र में सफलता हासिल करने में आसानी से कामयाब हो सकते हैं।

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