कुल पृष्ठ दर्शन : 305

You are currently viewing महंगा पड़ सकता है न्यायालय में हिंदी के आवेदन को रोकना

महंगा पड़ सकता है न्यायालय में हिंदी के आवेदन को रोकना

जनभाषा में न्याय…

पटना (बिहार)।

अब पटना उच्च न्यायालय की न्यायिक कार्यवाहियों में भारत संघ की राजभाषा हिंदी के आवेदन को रोकना महंगा पड़ सकता है। अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद और याचिकाकर्ता कृष्ण यादव ने इस मामले को पुरजोर ढंग से उठाया है।
वैसे तो पटना उच्च न्याया. में आजादी के समय से ही भारत संघ की राजभाषा हिंदी में मुकदमे दाखिल होते आ रहे थे, लेकिन कुछ न्यायमूर्ति महामहिम राज्यपाल की अधिसूचना में निहित अपवादों को ढाल बनाकर हिंदी आवेदन को रोकते आ रहे थे, जिसके कारण पटना उच्च न्याया. परिसर में हिंदी वर्गों एवं अंग्रेजी वर्गों के बीच युद्ध छिड़ने की स्थिति उत्पन्न हो गई थी, जिसके क्रम में क्रिमिनल डब्लूजेसी ४३५/२०१५ कृष्ण यादव बनाम बिहार राज्य एवं अन्य में उच्च न्याया. पटना की पूर्ण पीठ के निर्णयादेश ३०/४/२०१९ द्वारा पीड़ित पक्षकारों को भारत संघ की राजभाषा हिंदी में याचिका दाखिल करने का अधिकार इस सामुक्ति के साथ मिल गया था कि, यदि कोई व्यक्ति हिंदी में याचिका दाखिल करेगा तो उसके साथ उसका अंग्रेजी अनुवाद भी संलग्न किया जाएगा, तब तक संलग्न किया जाएगा, जब तक राज्यपाल बिहार की अधिसूचना ९/५/१९७२ में निहित अपवाद बरकरार रहेगा।
पटना उच्च न्याया. में पदस्थापित कुछ न्यायमूर्ति पूर्णपीठ के निर्णयादेश (३०/४/२०१९) के आलोक में हिंदी आवेदनों का अंग्रेज़ी अनुवाद अनुवादक विभाग से संलग्न करवा रहे थे, तो कुछ न्यायमूर्ति उसका अंग्रेजी अनुवाद पीड़ित पक्षकारों से जबरदस्ती ले रहे थे, तो कुछ बिना अंग्रेजी अनुवाद संलग्न करवाए हुए ही उसके गुण-दोष पर विचार कर रहे थे, जिसके परिप्रेक्ष्य में मुख्यमंत्री बिहार नीतीश कुमार की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक (१९/९/२०२३) हुई, जिसमें सर्वसम्मति से राज्यपाल (बिहार) की अधिसूचना में निहित अपवादों को हटाने एवं संशोधित अधिसूचना जारी करने का प्रस्ताव स्वीकृत हो गया।
आशा है कि, संशोधित अधिसूचना जारी होते ही पूर्णपीठ के निर्णयादेश को ढाल बनाकर हिंदी आवेदन को रोकने का रास्ता बंद हो जाएगा। जब कृष्ण यादव प्रकरण में पूर्णपीठ का निर्णयादेश वर्ष २०१९ में आया था तो लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई थी, लेकिन जब उसको ढाल बनाकर हिंदी आवेदनों का अंग्रेज़ी अनुवाद पीड़ित पक्षकारों से लिया जाने लगा, तो लोगों को भारी निराशा हुई। कुछ लोगों ने हिंदी में मुकदमा दाखिल करना बंद कर दिया था, लेकिन मंत्रिमंडल का निर्णय आते ही एक बार फिर बिहार की जनता में खुशी की लहर दौड़ गई है, जिसके दूरगामी परिणाम संभावित हैं। लोग यह सोचने लगे हैं कि, जैसे अनुच्छेद ३७० हट गया, वैसे अनुच्छेद ३४८ भी हट सकता है।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)