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माँ,जहाँ में मैं भी आना चाहती हूँ

वकील कुशवाहा आकाश महेशपुरी
कुशीनगर(उत्तर प्रदेश)

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भैया के ही जैसे हर पल खिलखिलाना चाहती हूँ,
माँ नहीं मारो,जहाँ में मैं भी आना चाहती हूँ।

है यही बस लालसा देखूँ ज़माने को जरा मैं,
कुदरती रंगीनियाँ दिलकश खजाने को जरा मैं।
तुम भले ही मुख नहीं यह देखना हो चाहती पर,
चाहती देखूँ तुम्हारे मुस्कुराने को जरा मैं।
फर्ज बेटी का जो होता,मैं निभाना चाहती हूँ-
माँ नहीं मारो,जहाँ में मैं भी आना चाहती हूँ।

पैदा होते फेंक देना मर नहीं सकती सुनो मैं,
हर तरफ ज़ालिम हैं लेकिन डर नहीं सकती सुनो मैं।
क्यों किसी के डर से मेरा खून करने तू चली है ?
माफ तेरी जैसी माँ को कर नहीं सकती सुनो मैं।
जो भी है अधिकार मेरा आज पाना चाहती हूँ-
माँ नहीं मारो,जहाँ में मैं भी आना चाहती हूँ।

हर समय यूँ कोख में मरती रहेंगी बेटियाँ क्या ?
ज़ुल्म पुरुषों का सदा सहती रहेंगी बेटियाँ क्या ?
जानवर की भांति हमको रख लिया है कैद करके,
हर कदम कदमों में ही ढहती रहेंगी बेटियाँ क्या ?
जन्म दे दो नारियों को,हक़ दिलाना चाहती हूँ-
माँ नहीं मारो,जहाँ में मैं भी आना चाहती हूँ॥

परिचय-वकील कुशवाहा का साहित्यिक उपनाम आकाश महेशपुरी है। इनकी जन्म तारीख २० अप्रैल १९८० एवं जन्म स्थान ग्राम महेशपुर,कुशीनगर(उत्तर प्रदेश)है। वर्तमान में भी कुशीनगर में ही हैं,और स्थाई पता यही है। स्नातक तक शिक्षित श्री कुशवाहा क़ा कार्यक्षेत्र-शिक्षण(शिक्षक)है। आप सामाजिक गतिविधि में कवि सम्मेलन के माध्यम से सामाजिक बुराईयों पर प्रहार करते हैं। आपकी लेखन विधा-काव्य सहित सभी विधाएं है। किताब-‘सब रोटी का खेल’ आ चुकी है। साथ ही विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आपको गीतिका श्री (सुलतानपुर),साहित्य रत्न(कुशीनगर) शिल्प शिरोमणी सम्मान(गाजीपुर)प्राप्त हुआ है। विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी से काव्यपाठ करना है। आकाश महेशपुरी की लेखनी का उद्देश्य-रुचि है।

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