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माँ

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली
देहरादून( उत्तराखंड)
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मातृ दिवस स्पर्धा विशेष…………


जीवन की पाठशाला की,
सर्वोत्तम एकेडमी है माँ।
शरीर में हम सबकी,
रक्त-सी दौड़ती है माँ।

जब समूचा ब्रह्मांड,
उदघोष करता है यहां।
तब कहीं जाकर धरती
पे पैदा होती है माँ।

जो समय के साथ बदलती,
और उसे भी थाम लेती है।
उसी संवेदना से अभेद्य,
सुरक्षा दे जाती है माँ।

मातृत्व शब्द,शब्द कोष का
अनन्त आकाश है यहाँ।
अपनी ममता के आँचल में,
सभी कुछ दे जाती है माँ।

गीता,कुरान,बाइबिल और,
सारे ग्रन्थों का सार है माँ।
करो सेवा तो चारों धामों,
का पुण्य दे जाती है माँ।

बड़े होने पर हम अनन्त,
आकाश में उड़ने लगते हैं।
कभी सीख,कभी अनुभव बन
हममें ही समा जाती है माँ।

शहरों की जगमग रौशनी में,
जब हम नहा रहे होते हैं।
गाँव में हमारी सलामती के लिए,
मंदिर में दिया जलाती है माँ।

बच्चे भूख से जब दम तोड़ते,
व बिलखते रहते हैं यारों।
सुनो,उनकी खातिर सरेराह
बिक जाती है ये माँ।

कहते हैं ममता की मूरत,
शुभ मुहूर्त व देवी रूप है माँ।
कभी मरियम-कभी जीजा
कभी पन्ना बन जाती है माँ।

मंदिरों-मस्जिदों के फेरे,
क्यों लगाते हो रात-दिन ?
जब घर में ही अन्नपूर्णा,
देवी रूप में रहती है माँ।

हर आँगन का तुलसी का,
बिरवा होती है माँ।
बुरी बला से अपने घरों को,
सदा बचाती रहती है माँ।

बहुत शोर है आज ‘मदर्स-डे’ का,
दुनिया में यहां-वहां।
मुझे तो अपने सीने से सदा,
लगाये रखती है मेरी माँ॥

परिचय: सुलोचना परमार का साहित्यिक उपनाम उत्तरांचली’ है,जिनका जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में श्रीनगर गढ़वाल में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं। उत्तराखंड राज्य के देहरादून की निवासी श्रीमती परमार की शिक्षा स्नातकोत्तर है।आपकी लेखन विधा कविता,गीत,कहानि और ग़ज़ल है। हिंदी से प्रेम रखने वाली `उत्तरांचली` गढ़वाली में भी सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मानमहिमा साहित्य रत्न-२०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान तथा विभिन्न श्रवण कैसेट्स में गीत संग्रहित होना है। आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता,गीत,ग़ज़लकहानी व साक्षात्कार के रुप में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में आपके ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं। आपका कार्यक्षेत्र अब लेखन व सामाजिक सहभागिता हैl साथ ही सामाजिक गतिविधि में सेवी और साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्यरत हैं।श्रीमती परमार की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आती रहती हैंl

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