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‘मित्र’ रत्न को संजोकर अवश्य रखें

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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मित्रता और जीवन…

             मानव एक सामाजिक प्राणी है और वह समाज से ही सीखता है। शिशु अवस्था में वह अपने माता-पिता, भाई-बहिनों के अलावा परिजनों से सीखता है और सुधरता है। शिशु अवस्था से लेकर युवावस्था के दौर में कई आयाम होते हैं- पहले घर, गली, मुहल्ला, प्राथमिक, उच्चतर और महाविद्यालयीन के समय जैसे मित्रों का चयन हो जाए, बस यहीं से बौद्धिक, व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक विकास होने लगता है। इसी समय की दोस्ती-मित्रता चिरस्थायी और आजीवन बनी रहती है, क्योंकि इस समय बौद्धिक चिंतन एकदम सपाट होता है। यहाँ कोई स्तर या हैसियत का स्थान नहीं होता है। यहाँ तक तो बात ठीक थी, पर जो अंतरंगता अध्ययन अवस्था की मित्रता में होती है, वह नहीं रह पाती है। आज मित्र बहुत हैं, पर मित्रता कम मिलती है। मित्रता वह टॉनिक होता है, जिसमें हृदय की पंखुरी अपने-आप खुलकर खुशबू बिखेरती है।
       मित्रता में एक खिंचाव-लगाव-आकर्षण-जूनून होता है, वह सब कुछ उसमें पा लेता है। अपना सुख-दुःख बाँट लेता है, उससे मिलकर दिल हल्का हो जाता है। उससे इतनी सुखानुभूति होती है, जिसका अहसास उसी क्षण होता है।
  आज भी मेरे मित्रों की सूची तो कम है, पर जो भी है, बहुत पुरानी है। कक्षा पांचवी-छटवीं के मित्रों से लेकर महाविद्यालीन दोस्त जिनकी दोस्ती की उम्र लगभग ६२ वर्ष से भी अधिक है, आज भी बरकरार है। आज भी वही प्रेम, वही खुलापन और वही अंतरंगता, जब भी मिलते हैं, मिलती है।
  कभी-कभी लगता है कि, दोस्त हमारी आत्मा हैं। कारण शरीर के साथ आत्मिक आनंद उनके सान्निध्य से मिलता है।
 जगत में ऐसी कौन-सी वस्तु है, जिसका प्राप्त करना इतना कठिन है जितना कि मित्रता का ? और शत्रुओं से रक्षा करने के लिए मित्रता के समान अन्य कौन-सा कवच है ?

मैत्री होती श्रेष्ठ की, बढ़ते चंद्र समान,
ओछे की होती वही, घटते चंद्र समान।
यानि कि, योग्य पुरुष की मित्रता बढ़ती हुई चन्द्रकला के समान है, पर मूर्ख की मित्रता घटते हुए चन्द्रमा के सदृश्य है।
मित्रता में बार-बार मिलना और सदा साथ रहना इतना आवश्यक नहीं है, यह तो हृदय की एकता ही है, जो मित्रता के सम्बन्ध को स्थिर और सुदृढ़ बनाती है। जो मनुष्य बुराई से बचाता है, सुमार्ग पर चलाता है और संकट के समय साथ देता है, बस वही मित्र है।
इस प्रकार मेरे परिवार, परिजन स्नेहीजनों के अलावा मित्रों द्वारा मिला प्रेम ही आज तक जीवन बनाए हुए है। मित्र से बात कर मन हल्का होता ही है, और पुरानी यादों में खो जाने से जिस आंतरिक आल्हाद का अनुभव होता है, वह अनमोल होता है। सबके जीवन में मित्र रूपी रत्न रहे और उनको संजोकर अवश्य रखें।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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